चाचा हुआ दोषमुक्त, भाई की सज़ा-ए-मौत 25 साल की कैद में तब्दील

कक्षा छठवीं में पढने वाली बहन के साथ सामूहिक बलात्कार कर काट दिया था सिर

जबलपुर: कक्षा छटवीं में पढ़ने वाली मासूम बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसका गला काटकर हत्या करने के अपराध में चाचा व सगे भाई को मृत्युदंड की सजा का मामला पुष्टि के लिए हाईकोर्ट आया था। हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई के बाद चाचा को दोषमुक्त करने तथा सगे भाई की सजा 25 साल के कारावास में तब्दील करने के आदेश जारी किये है। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि मामला दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है। आरोपी ने ट्रायल कोर्ट में अपना गुनाह कबूल कर लिया था। उसकी उम्र को देखते हुए सुधार का अवसर मिलना चाहिये। युगलपीठ ने प्रकरण को विरल से विरलतम नहीं मानते हुए राहतकारी आदेश जारी किये है।

प्रकरण के अनुसार छठवीं में पढने वाली नाबालिग 13 मार्च 2019 को घर से स्कूल परीक्षा देने निकली थी। जब घर वापस नहीं लौटी तो 14 मार्च 2019 को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। गन्नी नामक युवक ने पुलिस को बताया कि वह राम भगत के खेत की ओर गया था, जहां एक बालिका का सिर कटा शव देखा है। जिसके बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। इसी के साथ अपराध पंजीबद्ध किया गया। पुलिस ने सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के मामले में मृतिका के दो नाबालिग सहित तीनों सगे भाइयों सहित चाचा बंसीलाल के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में प्रकरण पेश किया था। नाबालिग दो भाईयों के मामले की सुनवाई जेजे एक्ट के तहत हुई थी।

अपर सत्र न्यायाधीश बंडा जिला सागर ने आरोपी सगे भाई राम प्रसाद अहिरवार उम्र 25 तथा चाचा बंसीलाल उम्र 45 को मृत्युदंड की सजा से दंडित किया था। जिसके खिलाफ दोनों की तरफ से हाईकोर्ट में अपील दायर की गयी थी। इसके अलावा न्यायालय ने भी मृत्युदंड की सजा को पुष्टि के लिए हाईकोर्ट भेजा था।आवेदको की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने युगलपीठ को बताया कि अभियोजन यह सिद्ध करने में असफल रहा है कि मृतिका की आयु 12 साल से कम थी। इसके अलावा आरोपी चाचा के खिलाफ एफएसएल रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं है। सिर्फ शर्ट में खून लगे होने के आधार पर उसे आरोपी बनाया गया था।

चाचा लाश मिलने से लेकर अंतिम संस्कार तक बच्ची के लाश के साथ रहा और अपनी गोद में लिया था। सत्र न्यायालय ने इस मामले को विरल से विरलतम श्रेणी में रखकर मृत्युदंड जैसा अपेक्षाकृत कठोर फैसला सुना दिया। बावजूद इसके कि अपीलकर्ता राम प्रसाद अहिरवार एक पेशेवर हत्यारा नहीं है। यह उसका पहला अपराध था। आरोपी व्यक्ति समाज के वंचित वर्ग अनुसूचित जाति समुदाय से हैं। उसके माता-पिता भी मजदूर पृष्ठभूमि से आते हैं। इस प्रकार, उनके लिए उपलब्ध शिक्षा और सामाजिक संपर्क का स्तर जातिगत गतिशीलता और हमारे समाज में मौजूद ग्रामीण शहरी विभाजन के सामाजिक परिवेश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
युगलपीठ ने सुनवाई के बाद आरोपी चाचा को दोषमुक्त करते हुए सगे भाई की सजा को 25 साल की कैद में तब्दील करने के आदेश जारी किये है। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि कारावास के दौरान आरोपी को पैरोल सहित अन्य लाभ प्रदान नहीं किये जायेगे।

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