चुनावी घोषणा पत्रों का हिस्सा बनें पर्यावरण संरक्षण !

कांग्रेस ने गुरुवार को अपने घोषणा पत्र का ऐलान किया है.भाजपा भी जल्दी ही अपना घोषणा पत्र जारी करने वाली है.अन्य दल भी अपना घोषणा पत्र या संकल्प पत्र जारी करेंगे. जिस तरह महंगाई, बेरोजगारी, औद्योगिकरण,आंतरिक सुरक्षा, कानून और व्यवस्था, महिलाओं,आदिवासियों,अल्पसंख्यकों और युवाओं की समस्याएं महत्वपूर्ण हैं.उसी तरह पर्यावरण संरक्षण भी आम जनजीवन से जुड़ा अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है.पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता को राजनीतिक दल चुनावी मुद्दा या अपने घोषणा पत्र का हिस्सा क्यों नहीं बनाते ? दरअसल पर्यावरण संरक्षण एक व्यापक विषय है.जैसे जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड,अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर, लद्दाख जैसे क्षेत्रों में हिमालय के संरक्षण को महत्वपूर्ण मुद्दा बनाया जा सकता है. इसी तरह तटीय क्षेत्रों में समुद्री पर्यावरण और प्रदूषण का मुद्दा चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जा सकता है. देश के लगभग 40 फ़ीसदी हिस्से में सूखे की समस्या रहती है. ऐसे में भूजल स्तर को लेकर पार्टियों ने चुनाव में जनता के समक्ष अपना दृष्टिकोण और वैकल्पिक कार्यक्रम बताना चाहिए. पर्यावरण संतुलन केवल प्रकृति के विनाश का मुद्दा नहीं है बल्कि यह मुद्दा आर्थिक समृद्धि से भी जुड़ा है. इसलिए सभी राजनीतिक दलों ने पर्यावरण संतुलन प्रकृति संरक्षण और जल तथा जंगल संरक्षण को मुद्दा बनाना ही चाहिए. बहरहाल ,इस बार मार्च के प्रारंभ में ही भीषण गर्मी महसूस होने लगी थी. यह सब ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है. दरअसल,पृथ्वी का तापमान बढ़ता ही जा रहा है. इसे कार्बन उत्सर्जन, विषैली गैसों और धुएं का दुष्प्रभाव माना जा रहा है.भारत में 90 प्रतिशत से अधिक कामगार और मजदूर खुले में ही काम करने को बाध्य हैं.यदि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां लगातार लंबी होती रहीं, तो ऐसे मजदूरों का काम करना असंभव-सा होता जाएगा. जाहिर है कि कामगारों की औसत उत्पादकता और कार्य-शक्ति कम होती जाएगी. जिसका नुकसान अंतत: देश को ही होगा.बहरहाल,संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आगामी दो साल में भारत में भूजल के स्तर में बेहद कमी हो सकती है. रिपोर्ट में समूचे उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्ष 2025 तक भूजल के गंभीर संकट के खतरे को इंगित किया गया है. चिंता इस बात की है कि पर्यावरण के प्रकृति जन्य सिद्धांतों को जानते-बूझते भी हम इस संकट की अनदेखी करने में लगे हैं.न केवल भारत, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी भूजल दोहन की यही तस्वीर है.यह कहना गलत नहीं होगा कि खतरे का अहसास होने के बावजूद कोई सबक लेने को तैयार नहीं. दरअसल वर्षा के जल को सहेजने के लिए व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है.इसी वजह से भूजल संकट बढ़ता जा रहा है. स्थिति यह है कि 400 फीट खोदने के बाद भी पानी नहीं मिलता. भूजल स्तर बढ़ाने के व्यापक प्रयास करने होंगे. पर्यावरण विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा. ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण असंतुलन का असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है. इस चेतावनी को बेहद गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है. दुर्भाग्य से प्रकृति उपासना की सनातनी परंपरा होने के बावजूद हमारे देश में पर्यावरण जागरूकता की अत्यधिक कमी है. इस संबंध में न केवल सरकारी प्रयास बल्कि गैर सरकारी स्तर पर भी व्यापक प्रयत्न करने होंगे. भूजल को बचाने के लिए बड़े जन आंदोलन की आवश्यकता है. यह आंदोलन सतत चलते रहना चाहिए तभी इस दिशा में कुछ ठोस हो सकेगा. अन्यथा भविष्य की पीढय़िां हमें कभी क्षमा नहीं करेंगी. कुल मिलाकर पर्यावरण संतुलन और प्रकृति संरक्षण को राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में शामिल करना ही चाहिए.

 

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