हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा स्पष्टीकरण
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट केवल सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र दिये जाने को चुनौती देने वाले मामले को गंभीरता से लिया। जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि गरीब सभी वर्ग व जातियों में हैं तो सभी को ईडब्ल्यूएस का प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा रहा है। इस संबंध में युगलपीठ ने मप्र शासन को स्पष्टीकरण पेश करने के निर्देश दिये हैं।
यह जनहित का मामला एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक एन्ड सोशल जस्टिस नामक संस्था की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने चुनौती देते हुए दायर किया है। जिसमें कहा गया है कि मप्र सरकार द्वारा 2 जुलाई 2019 को जारी ईडब्ल्यूएस नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6) तथा 16(6) के प्रावधानों से असंगत है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 15(6) तथा 15(6) में स्पष्ट प्रावधान है ईडब्ल्यूएस का प्रमाण पत्र सभी वर्गों को दिया जाएगा, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी आरक्षण का लाभ देने के उद्देश्य से उक्त प्रमाण पत्र केवल उच्च जाति के लोगों को ही जारी किए जाने की पॉलिसी जारी की है। जिसमें ओबीसी, एससी तथा एसटी वर्ग को ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाने का लेख किया गया है। आवेदकों की ओर से कहा गया कि उक्त पालिसी गरीबों में जाति तथा वर्ग के आधार पर विभेद करती है। पॉलिसी के साथ ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र के फार्मेट में स्पष्ट रूप से जाति लिखे जाने का लेख है जो की संविधान से असंगत है। वहीं शासन की ओर से बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण से संबंधित मामले का पटाक्षेप कर दिया है। जिस पर आवेदकों की ओर से आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा गया कि उक्त मामला जनहित अभियान बनाम भारत संघ का था। जिसमें संविधान के 103 वें संशोधन की वैधानिकता को अपहेल्ड किया गया है। जबकि इस याचिका में उठाये मुद्दों पर उक्त फैसले मे कहीं भी विचार नहीं किया गया है। जिसके बाद न्यायालय ने मप्र शासन को 30 दिनों में अपना स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिये हैं।