मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास
देवास जिले में विकास योजनाएं संगठन और भाजपाई जनप्रतिनिधियों के बीच पिस रही हंै. जनहित के मुद्दे कोई भी विधायक उठा नहीं पाता, कार्यकर्ताओं के मुद्दे संगठन भी उचित पटल पर नहीं ले जा पा रहा है. बागली में सिंचाई परियोजना जिसे हाट पिपलिया उद्दहन परियोजना के नाम से स्वीकृति मिली है, इसका एक स्टोरेज वॉटर टैंक बागली विधानसभा अंतर्गत कूप तालाब क्षेत्र में बनाना स्वीकृत हुआ था लेकिन हाट पिपलिया विधायक और बागली संगठन की रास्सा कशी में यह मामला ठंडा बस्ते में चला गया. इसके पूर्व बागली नगर में पेयजल से जुड़ी एक करोड़ से अधिक रुपए की लागत वाली टंकी बनाने वाली योजना (जिसका शिलान्यास हो चुका था) भी जनप्रतिनिधियों के बीच खींचतान से अधर में लटक गई. इसका श्रेय नगर परिषद स्वयं लेना चाहती थी दूसरी ओर विधायक समर्थक इसका श्रेय विधायक को देना चाहते थे. ऐसे बहुत सारे काम देवास जिले में जनप्रतिनिधियों और संगठन के बीच पेंडूलम बन कर रह गए हैं. प्रदेश के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा यहां के प्रभारी मंत्री हैं. वे अत्यधिक व्यस्तताओं के चलते बार-बार यहां आ नहीं सकते. इससे संगठन और जन प्रतिनिधियों में समन्वय का काम नहीं हो पा रहा व मामले सुलझने में मुिश्कलें आ रही हैं.
किसान न्याय यात्रा ने कांग्रेस में जान फूंक दी
किसान न्याय यात्रा ने कांग्रेस में जान फूंक दी है. लम्बे समय बाद यह पहला मौका था, जब हर कांग्रेसी सडक़ पर था. इसने एक तरह से निष्क्रिय पड़े कार्यकर्ताओं को भी घर से बाहर निकाल दिया. इस आंदोलन में पार्टी में दरकिनार पुराने नेता भी नजर आए. उज्जैन में बटुक शंकर जोशी, सत्यनारायण पंवार जैसे नेताओं ने एक अरसे बाद कोई मोर्चा सम्हाला. प्रदेश सह प्रभारी संजय दत्त, पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, प्रभारी चंदर सिंह सोंधिया, तराना विधायक महेश परमार, पूर्व विधायक मुरली मोरवाल, दिलीप गुर्जर की उपस्थिति ने कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया. नीमच में भी यही देखने में आया. केंद्र की राजनीति में रमीं पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन ने बहुत समय बाद प्रदेश के किसी आंदोलन में शिरकत की. इंदौर में प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी तथा दिग्विजय सिंह ने कमान सम्हाली. झाबुआ में कांग्रेस विधायक डॉ विक्रांत भूरिया झाबुआ, वीरसिंह भूरिया थांदला एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, पूर्व विधायक वालसिंह मेडा पेटलावद भी न्याय यात्र में बड़ी संख्या में किसानों को लाने में सफल रहे. एक तरह से यह आंदोलन हर कांग्रेसी को मैदान में लाने में कामयाब रहा.
बुरहानपुर में दम नहीं दिखा
कांग्रेस की किसान न्याय यात्रा जहां पर जगह उत्साहजनक रहा, वहीं बुरहानपुर अपवाद रहा. यहां व्याप्त गुटबाजी इस आंदोलन में भी साफ दिखी. ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा ने जरूर काफी जोर लगाया, लेकिन अन्य नेताओं ने इससे दूरी बनाए रखी. कांग्रेस की किसान न्याय यात्रा में यहां बुनकर, निगम समस्या जोडऩे के बावजूद भी आंदोलन में कोई दम नहीं दिखा. कांग्रेसी एकजुटता के अभाव में आयोजकों को भीड़ जुटाने में पसीने आ गए. जब कांग्रेस कार्यकर्ता ही आंदोलन के प्रति बे-मने रहे तो आम जनों कातो इससे किनारा करना स्वाभाविक था.