हाईकोर्ट ने निरस्त की सजा
जबलपुर: जस्टिस जी एस अहलुवालिया की एकलपीठ ने अपने अहम आदेश में कहा है कि स्वयं तथा संपत्ति को बचाने का व्यक्ति कानूनी हक प्राप्त है। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ धारा 304 बी के तहत जिला न्यायालय द्वारा दंडित सजा को निरस्त कर दिया है।धार जिले के कुक्षी निवासी भरसिया की तरफ दायर अपील में जिला न्यायालय द्वारा धारा 304 बी के तहत पांच साल के कारावास की सजा से दंडित किये जाने को चुनौती दी गयी थी। अपील में कहा गया था कि उसके तथा मृतक भूरचिका के बीच अच्छे संबंध थे। दोनों घटना दिनांक 22 दिसम्बर 1999 को दाल बैचने नानपुर गये थे। वापस लौटते समय भरसिया ने रास्ते में शराब पी थी। दोनों भूरचिका के घर वापस लौटे तो उसके उधार लिये 19 सौ रूपये वापस लौटा दिये।
इसके बाद वह रुपये वापस मांगने लगा तो उससे इंकार करने लगा। इसके बाद भूरचिका रुपये छीनने का प्रयास करने लगा। जिसके कारण से वह उसके घर से बाहर निकल गया। रूपये छीनने के लिए वह उसका पीछा करने लगा। जिसके कारण उसने दो पत्थर फैंककर उसे मार दिये। पत्थर उसके सिर में लगने के कारण उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी। पुलिस ने उसके खिलाफ हत्या सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया था। जिला न्यायालय ने धारा 304 बी के तहत उसे पांच साल की सजा से दंडित किया है। जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने साल 2001 में उक्त अपील दायर की थी।
एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई के दौरान अपने आदेश में कहा है कि अपीलकर्ता को स्वयं और अपने पैसे की रक्षा के लिए निजी बचाव का अधिकार था। उसने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए अनुपातहीन तरीके से कार्य नहीं किया। निजी बचाव के अपने अधिकार का अतिक्रमण नहीं किया, इसलिए वह भारतीय दंड संहिता की धारा 96 और 97 के तहत लाभ पाने का हकदार है। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराकर एक भौतिक अवैधानिकता की है। एकलपीठ ने अपील को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।