दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिश मार्लेना संभवत: शनिवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेंगी. उन्हें अरविंद केजरीवाल के स्थान पर आम आदमी पार्टी के विधायक दल ने मुख्यमंत्री पद के लिए निर्वाचित किया है. दरअसल अरविंद केजरीवाल ने शराब घोटाले में जमानत मिलने के दूसरे दिन ही दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने ऐलान किया कि जब तक उन्हें जनता की अदालत में सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा तब तक वो मुख्यमंत्री का पद ग्रहण नहीं करेंगे. दिल्ली में 5 महीने बाद फरवरी में विधानसभा के चुनाव होना है. जाहिर है अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव में विक्टिम कार्ड प्ले करके सहानुभूति प्राप्त करना चाहते हैं.
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे से भाजपा के लिए दिल्ली प्रदेश में एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. उत्तर भारत में दिल्ली ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां भाजपा 26 वर्षों से सत्ता से दूर है. हालांकि 2014,2019 और 2024 लगातार तीन लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली में क्लीन स्वीप किया है लेकिन दिल्ली प्रदेश की सत्ता से उसकी दूरी ढाई दशक से भी अधिक समय से बनी हुई है. 2013 से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं. जबकि इसके पूर्व 15 वर्ष तक कांग्रेस की शीला दीक्षित ने दिल्ली पर राज किया है. भाजपा के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि दिल्ली एक समय उसका गढ़ था.भारतीय जनसंघ के रूप में दिल्ली में वो महानगरपालिका में कई बार काबिज रही है.1967 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने दिल्ली की सभी सीटें जीती थी. दिल्ली में भाजपा की यह स्थिति थी कि यहां एक से बढक़र एक नेता थे.केदारनाथ साहनी, मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा, कंवरलाल गुप्ता, साहब सिंह वर्मा जैसे नेताओं ने भारतीय जनसंघ से लेकर 90 के दशक तक भाजपा का वर्चस्व बनाए रखा था, लेकिन अब भाजपा के पास प्रदेश स्तरीय नेताओं का अभाव हो गया है. अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे सकने लायक नेता भाजपा के पास नहीं है.बहरहाल,नरेंद्र मोदी की तरह अरविंद केजरीवाल भी देश के ऐसे नेता हैं जो अपने ऊपर आए संकट को अवसर में बदल देते हैं.नरेंद्र मोदी इस मामले में अव्वल हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल भी पीछे नहीं है.अरविंद केजरीवाल को जमानत सशर्त दी गई थी.एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर काम करने से रोका है.ऐसे में जब दिल्ली में फरवरी या मार्च में चुनाव हो सकते हैं, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री रहते हुए जनता के लिए घोषणाएं नहीं कर सकते. ऐसे अनेक लोक लुभावन वादें हैं जिनके लिए मुख्यमंत्री और कैबिनेट मीटिंग का होना जरूरी है.दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देते वक्त ऐसी शर्तें लगाई हैं कि उनका सीएम के तौर पर काम करना मुश्किल है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि केजरीवाल न तो सचिवालय जा पाएंगे और न ही बेहद जरूरी फैसलों को छोडक़र दूसरी फाइल साइन कर पाएंगे. यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केजरीवाल के हाथ पांव बांध दिए थे. ऐसे में केजरीवाल ने सीएम की कुर्सी पर चिपके रहने के बजाय इस्तीफा देना ही बेहतर समझा है.
43 साल की आतिशी दिल्ली के तख़्त पर $काबिज़ होने जा रही हैं.सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद, दिल्ली को फिर महिला मुख्यमंत्री मिल गई है.अब जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव नहीं होते, आतिशी मुख्यमंत्री बनी रहेंगी. दरअसल, देश के लोकतांत्रिक इतिहास में या पहली बार होगा जब किसी मुख्यमंत्री को उसका कार्यकाल पहले से ही पता होगा. यानी यदि 2025 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है तो आतिशी मुख्यमंत्री नहीं रहेंगी. यह भी दिलचस्प है कि खुद आम आदमी पार्टी ने आतिशी के कार्यकाल को खड़ाऊ राज कहा है. संजय सिंह, संदीप पाठक, सौरभ भारद्वाज जैसे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि आतिशी भरत की तरह शासन चलाएंगी.बहरहाल, दिल्ली की जनता को इस सत्ता परिवर्तन से शायद ही फर्क पड़ेगा, क्योंकि दिल्ली के वास्तविक सत्ता उपराज्यपाल के हाथों में है.दरअसल, देखना यह होगा कि अरविंद केजरीवाल का यह दांव राजनीतिक रूप से कितना सफल होता है !