एक राष्ट्र एक चुनाव : आम सहमति से ही कानून बनाएं

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक राष्ट्र एक चुनाव की सिफारिशों को मानते हुए प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है. मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद अब यह प्रस्ताव संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा. सरकार ने कहा है कि एक राष्ट्र एक चुनाव का बिल संसद के शीतकालीन सत्र में लाया जा सकता है. दरअसल एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले कार्यकाल में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी जिसमें अनेक कानूनी और संसदीय विशेषज्ञ शामिल थे. इस समिति ने लगभग डेढ़ वर्ष तक विचार विमर्श करने के बाद और लोगों की राय जानने के बाद प्रस्ताव तैयार किया है. यदि संसद इस बिल को पारित कर देती है तो फिर 2029 से देश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ में होंगे और इसके 100 दिन के भीतर नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव होंगे. सरकारी बयान में बताया गया है कि प्रस्ताव के लिए समिति ने करीब 56 राजनीतिक दलों से चर्चा की थी जिसमें से 32 दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया 14 ने कोई राय व्यक्त नहीं की. बाकी दलों ने विरोध किया. प्रमुख रूप से कांग्रेस,तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, राष्ट्रीय जनता दल, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है. विपक्षी दलों का कहना है कि एक तो यह बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं है. दूसरा यह कि इससे देश के संघीय ढांचे को गंभीर रूप से खतरा पहुंचेगा. इसके अलावा यह संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है. देश के संविधान विशेषज्ञ और संसदीय कार्य में विशेषज्ञ मानने वाले अनेक विद्वानों ने इस विधेयक पर दो तरह की राय दी है. देश के कुछ विद्वान इस विधेयक के पक्ष में हैं. जबकि कुछ विरोध में. जाहिर है सरकार ने इस विधेयक को कानून बनाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. केंद्रीय सरकार को चाहिए कि इस मामले में व्यापक सहमति बनाने का प्रयास करें.दरअसल,स्वतंत्रता दिवस समारोह में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न राजनीतिक दलों से इस पहल का समर्थन करने के लिये एकजुट होने की अपील की थी.उन्होंने कहा था कि देश में वर्ष पर्यंत चलने वाले चुनाव भारत की प्रगति में बाधक बन रहे हैं. निस्संदेह, एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये भाजपा द्वारा नई पहल किए जाने के निहितार्थ समझना कठिन नहीं है. भाजपा राष्ट्रीय स्तर की साधन संपन्न पार्टी है.ऐसे में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराने से सबसे अधिक लाभ उसे ही मिलेगा. राजनीतिक पंडित राजग सरकार की एक राष्ट्र,एक चुनाव की मुहिम के पीछे ऐसी ही सोच बताते हैं.एक साथ चुनाव कराये जाने पर एनडीए के साथ गठबंधन न करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. निस्संदेह, लोकतंत्र में सभी राजनीतिक दलों के लिये समान अवसर उपलब्ध होना जरूरी है. यह भारतीय जनता पार्टी के हित में होगा कि वह एक राष्ट्र,एक चुनाव, के मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिये कड़ी मेहनत करे. साथ ही इसके व्यावहारिक पहलुओं को लेकर हितधारकों द्वारा उठाये गए संदेहों को दूर करने का प्रयास करे. निश्चित ही यह राजग के लिये बड़ी चुनौती होगी क्योंकि इस बार विपक्ष पहले के मुकाबले मजबूत भी है और एकजुट भी है. इसमें दो राय नहीं कि यह बात तार्किक है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव का प्रयास शासन में सुनिश्चितता लाएगा. वहीं बार-बार के चुनाव खर्चीले होते हैं. दूसरे राज्य-दर-राज्य लंबी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य भी बाधित होते हैं. साथ ही साथ शासन-प्रशासन व सुरक्षा बलों की ऊर्जा के क्षय के अलावा जनशक्ति का अनावश्यक व्यय होता है.बहरहाल, इस विधायक के पक्ष और विपक्ष में अनेक तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन यह सरकार का कर्तव्य है कि इस तरह का कोई भी बड़ा कानून बनाने से पहले सभी राजनीतिक सामाजिक और संवैधानिक संगठनों से चर्चा करें.

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