नवभारत
बागली। संपूर्ण भारतवर्ष मे तीज त्यौहार एवं व्रत का बहुत अधिक महत्व है। तीज त्यौहार प्रतिवर्ष इसलिए आते हैं कि वर्ष भर में की गई गलती और आचरण का प्रायश्चित किया जा सके। इन्हीं व्रत में शामिल ऋषि पंचमी पर्व व्रत है। रजोधर्म होने वाली प्रत्येक स्त्री को यह व्रत करना चाहिए। अतिरिक्त सावधानी के बावजूद भी गलती वर्ष रजोधर्म के दौरान कोई कार्य ऐसा हो जाता है जो अपवित्रता की श्रेणी में आता हो उसी के प्रायश्चित के लिए ऋषि पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन व्रत धारण करने वाली महिला सुबह जल्दी उठकर आंधी झाड़ा नमक औषधि के 108 डठंल की गठरी बनाकर उसे सिर पर रखकर 108 लोटे पानी से नहाती है। तत्पश्चात मंदिर या घर पर सप्त ऋषि की एवं अरुनधिती माता की पूजा करती है। इस दौरान बगैर हल से उत्पादित किया मोरधन की खिचड़ी बनाकर या खीर बनाकर प्रसाद के रूप में अर्पित करते हुए स्वयं भी खाती है। उक्त बातें ऋषि पंचमी उद्यापन के समय पंडित नरेंद्र वैष्णव ने कहते हुए बताया कि इस उपवास के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। रजोधर्म से होने वाली महिलाएं इस व्रत को धारण करती है। एवं आंधी झाड़ा नामक औषधि पौधे के डंठल से 108 बार सीर पर पानी डालकर स्नान करती है। यह औषधि मस्तिष्क के नर्व सिस्टम को प्रभावित करती है। तथा अनियमित या अत्यधिक रजोधर्म प्रक्रिया में रक्तस्राव की स्थिति को नियंत्रित करती है। एक तरह की प्रकृति थेरेपी है। यह ऐसा करने से मासिक धर्म उचित प्रकार से होता है। रजोधर्म निश्चित उम्र के बाद बंद हो जाता है ।उसके बाद ही यह व्रत उजमाया जाता है।