नयी दिल्ली, 04 सितंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने उस फैसले को टालने पर सहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि सुनवाई के दौरान अदालत में शारीरिक रूप से या ऑनलाइन मौजूद रहने वाले अधिवक्ता ही अदालत के रिकॉर्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल के विशेष उल्लेख कर मुद्दे को सुलझाने के गुहार पर 29 अगस्त को पारित अपने आदेश को टालने पर सहमति जताई। पीठ ने आदेश को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया। मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी।
पीठ ने 29 अगस्त को निर्देश दिया था कि केवल वे अधिवक्ता ही मामलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं, जो सुनवाई के दौरान अदालत में शारीरिक रूप से या ऑनलाइन मौजूद होंगे (अदालती कार्यवाही, आदेश या निर्णय के रिकॉर्ड में)।
यह आदेश आंशिक रूप से सुनवाई की गई अवमानना याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान पारित किया गया था।
शीर्ष अदालत ने पाया था कि शहर में मौजूद नहीं रहने के बावजूद एक अधिवक्ता ने कार्यवाही के लिए उपस्थित होने वाले वकीलों की सूची में अपना नाम दर्ज किया था।
उक्त वकील का नाम दिसंबर 2022 में शुरू किए गए एक ऑनलाइन पोर्टल एडवोकेट अपीयरेंस पोर्टल के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था, जिसके द्वारा एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) को हर सुबह किसी मामले में उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं के नाम दर्ज करने होते हैं।
पीठ को 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान बताया गया कि उक्त अधिवक्ता न तो शारीरिक रूप से और न ही वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में उपस्थित था।
पीठ ने आगे कहा कि ऐसे अन्य अधिवक्ता भी थे जिनके नाम उनकी उपस्थिति दर्ज करने के लिए प्रस्तुत किए गए थे, भले ही वे अदालत में उपस्थित नहीं थे।
शीर्ष अदालत ने अफसोस जताया कि एडवोकेट अपीयरेंस पोर्टल का उपयोग केवल उन अधिवक्ताओं की उपस्थिति दर्ज करने के लिए किया जाता है जो वास्तव में मामले पर बहस करने या दलीलों में सहायता करने के लिए न्यायालय में हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा,“इसका मतलब यह नहीं होगा कि अधिवक्ता, जो न तो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित है और न ही ऑनलाइन है, उसे ऑनलाइन जानकारी प्रस्तुत करके अपनी उपस्थिति दर्ज करने की अनुमति दी जा सकती है।”
अदालत ने यह भी कहा कि बहस करने वाले अधिवक्ता के कार्यालय से जुड़े अन्य अधिवक्ता भी, जो न्यायालय में या वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हैं, उन्हें अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करानी चाहिए।
इसके बाद न्यायालय ने आदेश पारित किया कि केवल वे अधिवक्ता ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं जो शारीरिक रूप से या ऑनलाइन उपस्थित थे।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) से निर्देश का अनुपालन सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया।
अब अधिवक्ताओं के संगठनों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है। न्यायालय ने अपने निर्णय पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी है।