बांग्लादेश संकट और विपक्ष का सकारात्मक होना

निश्चित रूप से बांग्लादेश का घटनाक्रम भारत के लिए संकट ही माना जाएगा. संकट इन अर्थों में कि एक तो वहां भारतीय समुदाय विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले हो रहे हैं. दूसरी बात यह है कि वहां की स्थिति के कारण भारी संख्या में घुसपैठ होने का खतरा उत्पन्न हो गया है. इसके अलावा अब वहां जो सरकार गठित होने वाली है वो एक तरह से पाकिस्तान समर्थक होगी. जबकि अभी तक बांग्लादेश कश्मीर और अन्य विवादों पर भारत का एक तरफा समर्थन करता रहा है . इस संकट के क्षणों में भारत के विपक्ष दलों ने जिस तरह से सरकार का साथ देने का फैसला किया है, वो महत्वपूर्ण है. सर्वदलीय बैठक में सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार की कार्रवाइयों का समर्थन करने का फैसला किया है. खास बात यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि बांग्लादेश के मामले में केंद्र सरकार जो भी कदम उठाएगी हम उसका साथ देंगे. स्पष्ट है सभी राजनीतिक दलों ने अपने दलीय हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया है. यह बहुत ही महत्वपूर्ण है. भारत ने परिपक्व कूटनीति का परिचय देते हुए कहा है कि बांग्लादेश के घटनाक्रम से भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों पर फर्क नहीं पड़ेगा. इसी के साथ भारत सरकार ने अपनी परंपरा के अनुसार बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को तब तक भारत में रहने की अनुमति दे दी, जब तक उन्हें ब्रिटेन या कोई अन्य देश विधिवत राजनीतिक शरण नहीं दे देता. शेख हसीना को भारत में रखने के अपने जोखिम हैं, लेकिन भारत सरकार ने परंपरा के अनुसार अपने यहां शरण के रूप में आए अतिथि राजनीतिज्ञ का सम्मान करते हुए उन्हें यथोचित सुरक्षा प्रदान की है. पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकारें अतीत में दलाई लामा और शेख हसीना के पिता स्वर्गीय मुजीबुर रहमान को इस तरह की शरण दे चुकी हैं. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के समक्ष बांग्लादेश घटनाक्रम ने एक नई चुनौती प्रस्तुत की है. दक्षिण एशियाई देशों में भूटान के अलावा बांग्लादेश ऐसा देश माना जाता था जो पूरी तरह से भारत के साथ खड़ा है. अन्यथा चीन, पाकिस्तान,मालदीव्स यहां तक कि श्रीलंका के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. भारत की पहली प्राथमिकता यही होगी कि बांग्लादेश में रह रहे भारतीय और हिंदू सुरक्षित रहें. इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्रालय बांग्लादेश के शासकों के साथ लगातार संपर्क में हैं.बहरहाल, बांग्लादेश के घटनाक्रम ने भारत को भी अनेक सबक दिए हैं. सबसे बड़ा सबक यही है कि सरकार कोई भी ऐसा राजनीतिक कदम या बयान ना दें जिससे किसी समुदाय विशेष या वर्ग में नाराजगी बढ़ें. इसके अलावा बेरोजगारी के मामले में सरकार को देखना होगा कि युवाओं का

असंतोष सीमा पार न कर जाए. बांग्लादेश में बेरोजगारी के कारण युवाओं में असंतोष था जिसका फायदा पाक परस्त राजनीतिक दलों ने इस आक्रोश को अपने लिये सत्ता का रास्ता बनाने में इस्तेमाल किया, लेकिन इस संकट को शह देने में कई विदेशी ताकतें भी पीछे नहीं रही. दरअसल, महज सात माह पहले हुए आम चुनावों के बाद से ही देश में जनाक्रोश धीरे-धीरे बढऩे लगा था. दक्षिणपंथी रुझान वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी और अन्य राजनीतिक दलों ने आम चुनावों का बहिष्कार किया था. हालांकि,शेख हसीना लगातार चौथी बार सत्ता में तो आई, लेकिन विपक्षी दल जनता में यह संदेश देने में कामयाब रहे कि चुनावों में धांधली हुई है. इस तरह चुनावों के संदिग्ध तौर-तरीकों ने शेख हसीना की जीत को धूमिल कर दिया. जिसका अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी अच्छा संदेश नहीं गया.तभी पिछले महीनों में अपनी सरकार के लिये अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने हेतु शेख हसीना ने भारत व चीन की यात्रा की थी.हालांकि, इस दौरान देश में स्थितियां उनके अनुकूल नहीं थी.वास्तव में शेख हसीना लगातार विस्फोटक होती स्थितियों का सावधानी से आकलन नहीं कर पायी. आरक्षण आंदोलन को दबाने के लिये की गई सख्ती ने आग में घी का काम किया.बहरहाल, इस मामले में भारत का रवैया पूरी तरह से उचित है. यही वजह है कि सरकार को विपक्ष का पूरा साथ मिल रहा है.

 

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