भारत को सतर्क रहना होगा

बांग्लादेश में जिस तरह से तख्ता पलट हुआ है, उससे भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता है. समूचा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता जगाने वाला है. एक तो हसीना वाजेद की सत्ता चली गई है, जो भारत की हमदर्द मानी जाती थी, दूसरी बात यह है कि जब भी बांग्लादेश में अशांति होती है, भारी संख्या में वहां के लोग भारत में घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं. बांग्लादेश से लगे पश्चिम बंगाल ,असम और त्रिपुरा यहां तक की झारखंड जैसे राज्यों में भारी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए आ चुके हैं. 1971 में भी जब गृह युद्ध के कारण पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो भारत को शरणार्थियों की मार झेलनी पड़ी थी. इस बार भी वैसा ही होने की आशंका है. बांग्लादेश के नागरिकों की अवैध घुसपैठ के कारण भारत में तनाव तो होता ही है साथ ही डेमोग्राफी चेंज की समस्या भी खड़ी होती है. इसके अलावा फिलहाल बांग्लादेश की सत्ता सेना और पाकिस्तान समर्थक जमाते इस्लामी के नेताओं के पास चली गई है. नई सरकार भारत को अलग से सर दर्द देने वाली है. इस वजह से पूर्वोत्तर के प्रदेशों में भी अशांति बढऩे की आशंका है. कुल मिलाकर भारत को सतर्क रहना होगा तथा सीमा को यथासंभव सील करना पड़ेगा. दरअसल,बांग्लादेश में पिछले महीने, सरकारी नौकरियों में आरक्षित कोटा के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्र समूहों द्वारा की गई हिंसा में कम से कम 150 लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए.सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को लेकर बांग्लादेश में शांतिपूर्ण छात्र विरोध प्रदर्शन के रूप में जो शुरू हुआ वह प्रधान मंत्री शेख हसीना और उनकी सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण चुनौती और विद्रोह में बदल गया.रविवार को देश में हुई हिंसा के बाद सोमवार को प्रदर्शनकारियों ने राजधानी ढाका तक मार्च करने की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप भडक़ी हिंसा में कई मौतें हुईं, सेना ने प्रदर्शनकारियों का साथ दिया और कमान अपने हाथ में संभाल ली.पीएम हसीना ने विरोध किया और सेना के हेलीकॉप्टर के साथ देश छोड़ दिया है.सेना ने देश में अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा दिया है और अंतरिम सरकार बनाने की भी घोषणा की है. अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, छात्र शिविर, जो कथित तौर पर पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा समर्थित संगठन है, वही देश में हिंसा भडक़ाने के पीछे अपना काम कर रही है और बांग्लादेश में छात्रों के विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदलने का काम किया है.बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन सिविल सेवा कोटा प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर छात्र प्रदर्शन के रूप में शुरू हुआ.छात्रों ने तर्क दिया कि मौजूदा कोटा ने प्रधान मंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ पार्टी, अवामी लीग के वफादारों को गलत तरीके से लाभ पहुंचाया है. छात्रों का विरोध तब बढ़ गया जब प्रदर्शनकारियों ने सरकार के प्रति व्यापक असंतोष व्यक्त किया, जिस पर उन्होंने निरंकुश प्रथाओं और असंतोष को दबाने का आरोप लगाया.स्कूलों और विश्वविद्यालयों को बंद करने सहित सरकार की प्रतिक्रिया, अशांति को कम करने में विफल रही. इसमें कोई शक नहीं की आरक्षण के विरोध में छात्रों के आंदोलन को लेकर हसीना सरकार ने कई गलतियां की.सरकार ने शुरू में कहा कि छात्र कोटा विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल नहीं थे और झड़पों और आगजनी के लिए इस्लामिक पार्टी, जमात-ए-इस्लामी और मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को जिम्मेदार ठहराया,लेकिन रविवार को दोबारा हिंसा भडक़ने के बाद हसीना ने कहा कि ‘जो लोग हिंसा कर रहे हैं वे छात्र नहीं बल्कि आतंकवादी हैं जो देश को अस्थिर करना चाहते हैं. इससे मामला और बिगड़ गया. दरअसल बांग्लादेश में पिछले तीन वर्षों के दौरान बेरोजगारी बढी है. इसी वजह से युवाओं में असंतोष भडक़ रहा था, जिसे पाकिस्तान समर्थित संगठनों में हवा दी. इसके अलावा कहा यह भी जाता है कि हसीना वाजिद सरकार अमेरिकी हितों की कीमत पर चीन के नजदीक चली गई थी. कुल मिलाकर बांग्लादेश की घटनाक्रम पर भारत को नजदीकी निगाहें रखनी चाहिए तथा पूरी तरह से सतर्कता भी बरतनी चाहिए.

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