बलात्कार मामले में एफआईआर संदिग्ध की टिप्पणी की जाए विलोपित

युगलपीठ ने प्रदान की नाबालिग पीड़िता को गर्भपात की अनुमति

 

जबलपुर। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सक्सेना तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने बलात्कार संबंधित एफआईआर को संदिग्ध मानने संबंधित की गयी एकलपीठ को विलोपित करते के आदेश जारी किये है। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एकलपीठ ने तथ्यात्मक प्रमाणिकता के बिना उक्त टिप्पणी की है। युगलपीठ ने बलात्कार पीड़िता नाबालिग को एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भपात की अनुमति प्रदान करते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये है।

गौरतलब है कि गांधी मेडिकल कॉलेज में भर्ती बलात्कार पीडिता 15 वर्षीय नाबालिग लडकी के गर्भपात की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एकलपीठ ने एफआईआर को संदिग्ध मानते हुए याचिका को खारिज कर दी थी। जिसके कारण उक्त अपील दायर की गयी थी। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जिला व सत्र न्यायालय भोपाल को निर्देशित किया था कि वह अस्पताल में भर्ती नाबालिग बच्ची को गर्भपात की जटिलता के संबंध में समझने के लिए महिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में टीम गठित करें।

महिला जेएमएफसी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने बुधवार की रात अस्पताल जाकर पीड़ित बच्ची से मुलाकात कर उसे गर्भपात की जटिलता के संबंध में जानकारी दी। मनोचिकित्सक ने जांच में पाया था कि पीडिता की मानसिक आयु 6.5 साल है। बच्ची के माता-पिता अलग-अलग रहते है और उसका पालन दादी द्वारा किया जाता है, जिनकी उम्र 60 साल है। दादा का कहना है कि वह पीडिता तथा उसके बच्चे को पालने में असक्षम है। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार भ्रूण 28 सप्ताह पांच दिन का है। एमपीटी अधिनियम के तहत 24 सप्ताह से अधिक का होने पर गर्भपात की अनुमति प्रदान नहीं की जा सकती है। गर्भपात तथा बच्चे को जन्म देने की दोनों स्थिति में पीड़िता को जान का जोखिम है।

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने नाबालिग लडकी को 30 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति प्रदान की है। इसके अलावा उसकी दादा ने दोनों के पालन में अक्षमता जाहिर की है। युगलपीठ ने सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि परिस्थितियों के आधार पर भी गर्भपात की अनुमति प्रदान की जा सकती है।

युगलपीठ ने एमटीपी अधिनियम के तहत पीड़िता के गर्भपात की अनुमति प्रदान करते हुए अपने आदेश में कहा कि गर्भपात के दौरान जान का जोखिम होने के संबंध में पीड़िता के परिजनों को अवगत कराया जाये। स्पेशलिस्ट डॉक्टर की टीम के मार्गदर्शन में पीडिता का गर्भपात किया जाए और सभी प्रकार की सावधानियों का ध्यान रखा जाये। गर्भपात कब किया जाये, इस संबंध में डॉक्टरों की टीम निर्णय ले। बच्चे के भ्रूण का नमूना डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित रखा जाये। बच्चा जिंदा पैदा होता है, तो सरकार उसका पालन करें।

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