दिल्ली डायरी
प्रवेश कुमार मिश्र
नई दिल्ली: भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार व नेता विशेष पर केंद्रित संघ प्रमुख मोहन भागवत के कथित कटाक्ष से असहज हुए भाजपाई रणनीतिकारों ने डैमेज कंट्रोल करना आरंभ कर दिया है. संघ प्रमुख के बयान पर विपक्षी दलों की ओर से दी तीखी प्रतिक्रिया को गैर संदर्भित बताते हुए भाजपाई नेताओं ने विवाद पर पानी डालने का प्रयास किया है. हालांकि संघ प्रमुख के बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार ने जिस तरह से अपने कार्यालय के 11 वर्ष बाद आरएसएस पर 1966 में बैन को खत्म करते हुए केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने और सरकारी पद पर रहते हुए उसके गतिविधियों में शामिल होने की छूट दी है उसे सरकार व संघ के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास बताया जा रहा है. दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस निर्णय को लेकर जबरदस्त चर्चा है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार को अपने तीसरे कार्यकाल में संघ का महत्व समझ में आना बहुत कुछ बयां कर रहा है.
कांवड़ यात्रा नेमप्लेट मामला
सावन में कांवड़ यात्रा के रास्ते में आने वाले दुकानदारों के मालिकों के नाम को बोर्ड पर लिखने के उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार के आदेश को वैसे तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक लगा दी गई है. लेकिन राज्य सरकारों का यह निर्णय खूब सुर्खियों में रहा है. विपक्षी दलों के अलावा सत्तापक्ष के विभिन्न दलों के नेताओं ने इसे तुगलकी फरमान बताते हुए समाज को तोड़ने का गलत प्रयास कहकर राज्य सरकारों को आड़े हाथों लिया था. उत्तर प्रदेश सरकार के उक्त निर्णय के बाद संचार के विभिन्न माध्यमों पर इस विषय को लेकर जबरदस्त बहसबाजी व चर्चा होती रही. विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपेक्षा के विपरित परिणाम मिलने के बाद धर्म की राजनीति के इस नए माडल को परिक्षण के तौर पर उपयोग किया गया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे गैरवाजिब ठहराकर इसके बढ़ते स्वरूप को आरंभ में ही रोककर धर्मनिरपेक्षता को मजबूत किया है. जबकि इस संदर्भ में सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा अपने तर्कों से इसके बेहतर परिणाम को स्थापित करने का प्रयास किया जाता रहा.
हरियाणा चुनाव के पहले कांग्रेस में बढ़ी गुटबाजी
लोकसभा चुनाव में दस में से पांच सीटों पर जीत हासिल करने के बाद हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के बीच इसका श्रेय लेने की होड़ लग गई है. इसके कारण विधानसभा चुनाव की आरंभिक तैयारी में ही गुटबाजी दिखने लगी है. विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर सक्रिय हुए गुट सिर्फ अपने लोगों को आगे बढ़ाने के प्रयास में जुटे हैं बल्कि दूसरे गुट के लोगों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से विरोध कर रहे हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा परेशानी उम्मीदवारों के सामने आ गई है. पार्टी के केन्द्रीय नेता भी टिकट के दावेदारों को गुण-दोष के बजाय नेता विशेष के गुट के रूप में देख रहे हैं. हालांकि पूर्व के अनुभवों का हवाला देकर सूबे के कई नेता तीनों सक्रिय गुट को एकजुट करने के लिए पार्टी के केन्द्रीय नेताओं से गुहार लगा रहे हैं.
आक्रामक मुद्रा में खड़े दिखे विपक्षी
संसद के बजट सत्र के आरंभिक दिन ही नीट परीक्षा, नेमप्लेट मामला, बिहार व आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने जैसे मुद्दों पर विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर के साथ घेराबंदी आरंभ कर दी है. मुद्दा विशेष पर यदि कोई एक विपक्षी समूह का सदस्य सरकार को घेरने का प्रयास कर रहा है तो मौका देखकर दूसरे दलों के नेता भी हस्तक्षेप कर सरकार के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं. हालांकि सरकार की ओर से संबंधित विभाग के मंत्रियों के अलावा सत्तापक्ष के विशेषज्ञ नेताओं द्वारा भी पलटवार किया जा रहा है.