ग्वालियर चंबल की डायरी
हरीश दुबे
ग्वालियर: चुनावी मोड में आ चुके विजयपुर में सत्तादल के दो पुराने विधायकों ने कांग्रेस से आए रामनिवास रावत को टिकट के मुद्दे पर बगावती तेवर अपनाए तो कांग्रेस एकदम से फील गुड में आ गई। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने उपचुनाव में अपनी राह को आसान बनाने के लिए इन बगावती विधायको पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। हालांकि भाजपा का डिजास्टर मैनेजमेंट अभी भी इसी यकीन में है कि रावत से नाराज इन विधायकों को उसी तरह मना लिया जाएगा, जिस तरह अपना महकमा छीने जाने से खफ़ा हो मंत्री पद छोड़ने की धमकी देने वाले नागर सिंह चौहान को संतुष्ट किया गया है। बहरहाल, कांग्रेस की ओर से ऑफर दिया जा रहा है कि यदि भगवा कैंप से बगावती तेवर वाले दोनों विधायकों में से कोई भी पाला बदल करता है तो उसे टिकट दे दिया जाएगा। रामनिवास को दो बार चुनाव हरा चुके बाबूलाल मेवरा अटलजी से नजदीकी रखने वाले कट्टर भाजपाई हैं, इसलिए उनके निष्ठा परिवर्तन की ज्यादा गुंजाइश नहीं है लेकिन सीताराम आदिवासी को कमजोर कड़ी माना जा रहा है। अपने समाज के पचास हजार वोटों की ताकत का हवाला देकर वे पहले ही कह चुके हैं कि टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस में भी जा सकते हैं। हालांकि पिछले चुनाव में अपना वोट बैंक साबित कर चुके मुकेश मल्होत्रा भी कांग्रेस से टिकट की दौड़ में हैं। अभी उपचुनाव के कार्यक्रम का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अशोक सिंह ने श्योपुर पहुंचकर एक बड़े कार्यकर्ता सम्मेलन के जरिए अपनी पार्टी की ओर से चुनावी शंखनाद कर दिया है। भाजपा की बगावत में कांग्रेस को फिलहाल अपनी जीत नजर आ रही है।
यहाँ भी अपनी ही सरकार से सड़क पर जंग
उपचुनाव से इतर भी भाजपा के कुछ स्थानीय नेताओं में अपनी ही पार्टी की सरकार की मशीनरी के खिलाफ कुलबुलाहट साफ महसूस की जा रही है। बिजली कम्पनी द्वारा शहर के एक पुराने भाजपा नेता के परिजनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने से भड़के इस नेता के समर्थकों ने जिस अंदाज में मुरार थाने का घेराव किया और पुलिस पर हावी हुए, उसे देख अफसरों से लेकर पार्टी के स्थानीय नेतृत्व के पसीने छूट गए। खास बात यह है कि अपने ही प्रशासन के खिलाफ इस धरना प्रदर्शन में पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के समर्थक माने जाने वाले नेताओं की खासी भीड़ रही। चूंकि सूबे में बिजली के वजीर प्रद्युम्न सिंह हैं, लिहाजा इस प्रदर्शन में पवैया समर्थकों की सक्रियता के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
ग्वालियर नहीं आना चाहते बड़े अफसर
कभी ग्वालियर मध्यभारत राज्य की राजधानी होता था लेकिन मध्यप्रदेश में विलय के बाद ग्वालियर का यह दर्जा जाता रहा। यह जरूर हुआ कि तत्कालीन स्थानीय नेतृत्व के प्रेशर में रेवेन्यू बोर्ड, आबकारी, ट्रांसपोर्ट और लैंड रिकॉर्ड जैसे सूबे के वजनदार इदारों के हैड क्वार्टर ग्वालियर के खाते में आए, लेकिन भोपाल में बैठकर प्रदेश चलाने के आदी हो चुके बड़े अफसर इन विभागों में तैनाती के बावजूद ग्वालियर आने में कम ही रुचि दिखा रहे हैं। ग्वालियर स्थित प्रदेश का रेवेन्यू बोर्ड भी अफसरों के अभाव में कुछ ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहा है। हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि कोरम पूरा न होने के कारण रेवेन्यू बोर्ड में सुनवाई ही बन्द करना पड़ी है। बोर्ड के अध्यक्ष व एक मेंबर के रिटायर होने के बाद से ही कोरम अधूरा है। यह सूरतेहाल पहली जून से बना है, अब तो रजिस्ट्रार ने भी सुनवाई न हो सकने बावत आदेश जारी कर दिया है। पक्षकार भटक रहे हैं।
निश्चिंत हैं दोनों दलों के सदर…
कमल दल और कांग्रेस दल दोनों में ही नए शहर सदर नियुक्त होना है। दावेदारों की गणेश परिक्रमाएँ चल रही हैं लेकिन दोनों पार्टियों के सदर निश्चिंत हैं, वजह यह कि छत्रपों द्वारा अपने अपने पट्ठों के नाम अड़ा देने से फिलहाल किसी एक नाम पर रजामन्दी होती नहीं दिख रही।