एमपी के टाइगर मैन को पद्म सम्मान क्यों नहीं ?

दृष्टिकोण

क्रांति चतुर्वेदी

भारत के दिल में बसे पन्ना नेशनल पार्क की वादियों को वहां एक बार भी जाने के बाद कोई कैसे भूल सकता है …? कहीं पठार तो कहीं पहाड़ । कहीं सपाट मैदान तो कहीं खिल-खिलाती घास । ऊंचे ऊंचे घने सागवान के वृक्ष । गहरी खाईयां। और दो यादों को तो चाह कर भी नहीं भुलाया जा सकता ! यहां की सौंदर्य से लबालब
’ पारदर्शी ’ केन नदी और यहां वहां गूंजती बाघों की दहाड़ । केन नदी को पारदर्शी नदी इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि जंगलों से गुजरने के दौरान यह अपने एक नदी के मौलिक और प्राकृतिक स्वरूप में इतनी स्वच्छ है कि इसकी तलहटी में पड़े कंकर को भी आप आसानी से देख सकते हैं ! यही इसका सौंदर्य है । और बाघों की हर वक्त दहाड़ इसलिए कि अभी यहां 90 से ज्यादा बाघ आबाद है । पन्ना के जंगलों को महसूस करने के और भी बहुत आयाम है । लेकिन जंगलों के इस तरह आबाद होने की चंचलता के दौर को जिन्होंने देखा , जाना और समझा है , उन्हें यहां आकर एक टीस की अनुभूति भी होती है !

इस टीस की चर्चा करने के पहले हम जाने पन्ना स्टोरी है क्या ? दरअसल वक्त का एक ऐसा दौर आया था जब पन्ना के जंगल उदास हो गए थे । यहां चहल पहल कम हो गई थी । और उम्मीद से आए पर्यटक निराश होकर लौटने लगे थे । यहां धीरे-धीरे बाघों की दहाड़ सुनाई देना बंद हो गई थी । सन 2009 की शुरुआत तक तो बाघों की संख्या इस नेशनल पार्क में शून्य तक जा पहुंची थी । भारत सरकार ,राज्य सरकार , वन्य जीव से संबंधित संस्थाओं से लगाकर वन्य जीवों से अनुराग रखने वाले लोग और पर्यटक ,सभी चिंता व्यक्त कर रहे थे ।

बाघों की शरण स्थली माने जाने वाले मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड और बघेलखंड की सीमा से घिरे इन जंगलों में बाघों का गायब हो जाना , सभी के लिए चिंता का विषय रहा । तभी सरकार ने आईएफएस आर श्री निवास मूर्ति को यहां का प्रभार सौंपते हुए उन्हें फील्ड डायरेक्टर बनाकर भेजा । बाघ विहीन पन्ना को बाघों से फिर आबाद करना किसी बड़ी कठिन चुनौती से कम नहीं था ! लेकिन मूर्ति का अपनी टीम को हर बार एक ही संदेश रहता था…… परिस्थितियां चाहे जितनी भी कठिन और प्रतिकूल क्यों न हो , पन्ना के जंगलों को हमें फिर से बाघों से आबाद करना है ! बाघ संरक्षण को मिशन मोड में लिया गया और एक नारा दिया गया …….जन समर्थन से बाघ संरक्षण । इस नारे की सफलता की गूंज अब प्रदेश , देश और विदेशों में भी सुनाई दे रही है ।

पन्ना में बाघों की संख्या शून्य तक पहुंचाने का एक प्रमुख कारण यहां शिकार मानसिकता की पृष्ठभूमि भी रहा है । जब आप जब पन्ना के रियासत कालीन किस्सों को सुनेंगे तो आप पाएंगे कि यहां की फिजा में बाघों का शिकार गर्व का विषय माना जाता रहा है । पन्ना , छतरपुर और बिजावर की तत्कालीन रियासतों की किस्सा गोई की चली आ रही परंपरा और मौजूदा दौर में भी सामंती मानसिकता में शिकार , सोशल स्टेटस का एक कारण माना जाता रहा । मूर्ति ने गोपनीय सूचनाओं का अपना नेटवर्क विकसित किया । शिकार पर कड़े कानून के साथ कार्रवाई की । समाज से संवाद स्थापित किया ।

और जन समर्थन से बाघ संरक्षण विचारधारा को जमीन और जंगलों में फैलाते हुए यह मानस तैयार किया कि बाघों का शिकार नहीं , पन्ना के जंगलों में बाघों का होना …..अब नए समय के लिए क्षेत्र वासियों के लिए गर्व की बात है । बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत 3 टाइगर बाहर से लाए गए । दो बाघिन टी 1 तथा टी 2 क्रमशः बांधवगढ़ और कान्हा से तथा एक बाघ टी 3 पेंच से लाए गए । इसके बाद तमाम प्रयासों के चलते इनका कुनबा बढ़ता ही गया । पन्ना में बाघों के संरक्षण के लिए आवश्यक तकनीकी प्रक्रियाओं , उनका रेडियो कॉलिंग करना , रासायनिक निश्चेतन ( बेहोश करना )आदि के लिए नेशनल पार्क की टीम को अपने तरीके से तैयार किया गया । इस टीम ने बहुत ही अच्छी तरह से इन प्रक्रियाओं को संचालित किया । बाघों के प्रजनन के लिए भी अनुकूलताएं तैयार की गई । बाघ शावकों की मृत्यु दर को भी नियंत्रित किया गया । इसके अलावा और भी अनेक उपाय किए गए ।

पन्ना में बाघ संरक्षण के लिए हाथी पर सवार होकर सदैव खुद मोर्चा संभालने वाले मूर्ति अब सेवानिवृत हो चुके हैं । 2009 से 0 से शुरू यह सफर 2015 तक 32 बाघों तक पहुंच गया था । बाद में भी बाघ परिवार का विस्तार थम नहीं रहा है । अभी यहां 90 से ज्यादा बाघ हो चुके हैं । बहुत जल्दी ही यह आंकड़ा शतक पार कर लेगा । पन्ना स्टोरी की सफलता के बाद 2018 में हमारे मध्य प्रदेश को फिर बाघ स्टेट का दर्जा मिल चुका है । मध्य प्रदेश के कूनो में जो चीते लाए गए हैं , उसका एक आधार भी पन्ना की यही कहानी रही है । मध्य प्रदेश , देश के अन्य प्रदेश तथा दुनिया के देशों में वन्य जीव संरक्षण के संदर्भ में पन्ना स्टोरी एक मील का पत्थर साबित हो रही है ।

मूर्ति अभी भी बाघ संरक्षण का दिशा दर्शन देने के लिए भारत एवं विदेशों में भी जा रहे हैं । किसी भी जंगल में बाघों की बहुलता होना उस जंगल के लिए यह ’ शिखर सम्मान ’ से कम नहीं होता है ! तो पन्ना के जंगलों की टीस क्या है ….? यहां के जंगलों को शिखर सम्मान का आभास कराने वाले के सम्मान का क्या …..? मध्यप्रदेश सरकार ने अपने राज्य में टाइगर मैन के नाम से मशहूर आर श्रीनिवास मूर्ति को पद्म सम्मान देने के लिए 2016 और 2017 में प्रस्ताव तैयार कर भेजा । …..पन्ना के घने जंगलों में भी यही सवाल तो तैर रहा है…… एमपी के इस टाइगर मैन को पद्म सम्मान कब मिलेगा…..?

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