जबलपुर: मप्र हाईकोर्ट ने एक कर्मचारी की नियुक्ति और वेतनमान के विवाद में केन्द्र सरकार की ओर से वकालतनामा दाखिल न होने पर नाराजगी जताई। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने मामले में कहा कि कई अवसर दिये जाने के बावजूद भी वकालतनामा पेश न होना घोर लापरवाही है। न्यायालय ने नया वकालतनामा दाखिल करने की मोहलत देते हुए डायरेक्टर जनरल ऑफ आर्डिनेंस पर बीस हजार रुपये की कॉस्ट लगाई।
दरअसल यह मामला जबलपुर के अधारताल निवासी पी मनोहर अय्यर की ओर से दायर किया गया था। केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) ने उनकी नियुक्ति और वेतनमान संबंधी दावा 19 जून 2024 को निरस्त कर दिया था, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली गई। मामले में विगत दिनों हुई सुनवाई दौरान केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि वकील बदलने के कारण उन्हें नया वकालतनामा दाखिल करने समय दिया जाए।
रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने कहा केन्द्र सरकार द्वारा वकालतनामा के नाम पर फरवरी माह से समय लिया जा रहा है। केन्द्र सरकार के नए वकील की नियुक्ति मई माह में हुई थी। 14 फरवरी के बाद 29 सितंबर 2025 को भी उन्हें समय दिया गया था। इतना समय बीत जाने के बाद भी केन्द्र सरकार की ओर से देरी के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया जा रहा है। उक्त मत के साथ न्यायालय ने डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑर्डिनेन्स पर जुर्माना लगाते हुए उन्हें अतिरिक्त मोहलत प्रदान की।
