नयी दिल्ली, 04 सितंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज के लिए समान संहिता (यूसीपीएमपी) 2024 के संबंध में गुरुवार को सवाल किया कि अगर यह संहिता एक ‘बिना दांत का बाघ है’ तो इसका उद्देश्य क्या है?
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने ‘फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वास्तविक “कठिनाई” मानदंडों के कार्यान्वयन में है।
पीठ ने दवाओं के प्रचार के किसी भी अनैतिक तरीके पर अंकुश लगाने के मद्देनजर दवा कंपनियों की विपणन प्रथाओं के लिए एक समान संहिता की मांग वाली इस याचिका पर सुनवाई के दौरान और भी कई सवाल किये।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में की गई गुहार का अब कोई मतलब नहीं रह गया, क्योंकि एक वैधानिक व्यवस्था पहले से ही लागू है।
इस पर पीठ ने कहा, “मुश्किल यह है कि व्यवस्था तो मौजूद है, लेकिन क्या उसका वास्तव में पालन होता है या नहीं।” इस मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पिछले साल एक नई व्यवस्था लाई गई थी।
पीठ ने पूछा, “यही चिंता का विषय है कि अगर यह एक बिना दांत का बाघ है… तो इसका उद्देश्य क्या है।”
श्री मेहता ने सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा, “यह एक ऐसा ‘बाघ’ है जिसके नियंत्रण में सारी शक्ति है।”
पीठ ने मामले की सुनवाई सात अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
याचिका में यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि जब तक इस याचिका के मद्देनजर एक प्रभावी कानून नहीं बन जाता, तब तक शीर्ष अदालत दवा कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है। इसकी जगह वैकल्पिक रूप से मौजूदा संहिता को उचित संशोधनों/परिवर्धन के साथ बाध्यकारी बना सकती है।
याचिका में कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002, दवा और संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र उद्योग के साथ डॉक्टरों के संबंधों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करते हैं। इसमें डाक्टरों दवा कंपनियों से उपहार, मनोरंजन, यात्रा सुविधाएँ, आतिथ्य या मौद्रिक अनुदान स्वीकार करने पर रोक लगाने का प्रावधान है।
गौरतलब है कि यूसीपीएमपी 2024 पिछले साल लागू की गई थी।
