इंदौर: सिगरेट के बचे हुए टुकड़े और बट यानी फिल्टर पर्यावरण के लिए हानिकारक है. एक जानकारी के अनुसार एक सिगरेट के टुकड़े को डी कंपोज़ करने के लिए पंद्रह साल लगते हैं. सिगरेट का बट सेल्युलोस एसिटेट यानी पॉलिमर जो कि फाईबर से निर्मित होता है. दुनियाभर में हर वर्ष पैतालिस सौ अरब सिगरेट के टुकड़े नदी में बहाए जाते हैं, जो कैंसर, टीबी, हड्डियों की समस्या एवं कई तरह की बीमारियां फैलाते है.
वहीं भारत में हर वर्ष करीब तीन करोड़ टन सिगरेट वेस्ट निकलता है. अक्सर देखा गया है कि चाय पान एवं सार्वजनिक स्थान पर लोग धुम्रपान कर सिगरेट का बाकी हिस्सा वहीं फेंक देते हैं. पर्यावरण हितैषी फाउंडेशन संस्था द्वारा मुहिम चालाई गई जो पर्यावरण और मानव हित के लिए एक बड़ी पहल थी. संस्था द्वारा सिगरेट बट संग्रह करने के लिए शहर में ऐसे स्थानों पर करीब 2500 छोटे डस्टबीन लगाए थे. इकट्ठा हुआ वेस्ट संस्था द्वारा ही ले जाकर एक सुरक्षित स्थान पर रखा जाने लगा था. लेकिन पिछले एक वर्ष से आर्थिक परस्थिति के चलते पहल रूक गई.
इनका कहना है
किसी का इस पर ध्यान ही नहीं गया. यह पहल बंद नहीं होनी चाहिए. निगम संस्था की मदद करे या खुद इस योजना पर कार्य करे. यह पर्यावरण और मानवता के हित में है.
– जगदीश भाटिया. शहरी
लोगों को नया काम लगा. जागरूक जनता है. ग्राहक खुद उसमें बट डालते थे जिन्होंने हमारे यहां डिब्बा लगाया था. वह खुद वेस्ट ले जाते थे लेकिन अब वो लोग नहीं आते है.
– विष्णु यादव, दुकान संचालक
फाउंडेशन के सभी सदस्यों ने निर्णय लिया है कि यह सिगरेट बड्स नगर निगम को निःशुल्क देना चाहते हैं और अब नगर निगम आगे से इस कार्य को स्वयं करे या संस्था का सहयोग करे.
– मुकेश कुमार अमोलिया, राष्ट्रीय अध्यक्ष पर्यावरण हितैषी फाउंडेशन
