कल तक भटकते थे सडक़ों पर,अब किताबें थामकर बदलेंगे भविष्य

समाजसेवियों और प्रशासन के समन्वय से पहली बार 60 से ज्यादा बच्चों के जीवन में आया सुधार

रतलाम: जो बच्चे कल तक सडक़ों पर नंगे पैर यहां-वहां भटकते, छोटी-छोटी उम्र में सिगरेट, गुटका से लेकर हानिकारक नशों की लत में फंस रहे थे। वो आज हर रोज पढाई कर रहे हैं और जल्द ही स्कूल में भी जाएंगे।यह कहानी किसी दूर दराज इलाके की नहीं, शहर के पॉश इलाके अस्सी फीट रोड की है। बंगलों से घिरे इलाके में पिछले दशक से करीब 32 परिवार झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। ये परिवार अधिकांश आदिवासी समाज से हैं और बाजना, रावटी, सरवन, झाबुआ से लेकर बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ राजस्थान तक से आकर मजदूरी के लिए बस गए हैं। समस्या यह थी कि इनके पास या तो आईडी और कागजों के नाम पर आधे-अधूरे पुराने दस्तावेज थे या कुछ के पास वो भी नहीं। ऐसे में बड़ों ने आधार कार्ड तो बनवा लिए लेकिन बच्चे जन्म प्रमाण पत्र के अभाव में आधार कार्ड से लेकर समग्र आईडी तक से दूर रह गए। इस कारण सरकारी स्कूलों में भी दाखिला नहीं मिला।

इस तरह सुधरने लगे हालात: समाजसेवी एडवोकेट शिल्पा जोशी, पत्रकार अदिति मिश्रा और स्व. हेमा हेमनानी को दिसंबर में इन बच्चों के अभावों की जानकारी मिली। एडवोकेट अदिति दवेसर की मदद से चारों ने यहां बच्चों और अभिभावकों के साथ मिलकर उन्हें समझाने और सही दस्तावेज बनवाने के लिए अपने-अपने गांवों से रिकार्ड लाने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे मजदूरी करने वाले माता-पिताओं ने भी रुचि लेना शुरु की और डेढ़ से दो महीनों की मेहनत के बाद पुराने रिकार्ड और अभिभावकों के आधार कार्ड और वोटर आईडी के आधार पर बच्चों की गणना और सर्वे शुरु हुआ। इस कार्य में तत्कालीन कलेक्टर भास्कर लाक्षाकार ने संवेदनशीलता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश करते हुए स्वयं रुचि ली। उनके निर्देश पर कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास विभाग रजनीश सिन्हा, महिला सशक्तिकरण अधिकारी रविंद्र मिश्रा, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग और स्वास्थ विभाग ने समन्वय टीम बनाई।

घर पंहुचकरबनाए आधार कार्ड:प्रशासनिक अमले की मदद से महिला एवं बाल विकास विभाग और जनशिक्षकों की मदद से सर्वे शुरु किया गया। इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने कई दिनों तक समाजसेवियों के साथ मेहनत की। जिन बच्चों का जन्म अस्पतालों में हुआ था, वहां जाकर स्वास्थ विभाग की मदद से जन्म प्रमाण पत्र बनवाए गए और करीब 60 बच्चों के आधार कार्ड तत्कालीन कलेक्टर के आदेश पर झोपडिय़ों के करीब ही मशीन लगाकर बनाए गए। इस बीच सुश्रि हेमा हेमनानी का दुखद निधन हो गया, जिसके बाद जोशी और मिश्रा ने एडवोकेट दवेसर की मदद से समग्र आईडी बनवाने की भी शुरुआत की।

छुट्टियों में ले रहे सीख: बच्चों को आईडी आदि बनने पर जिला योग प्रशिक्षक आशा दुबे ने व्यक्तिगत रुचि लेते हुए उम्र के अनुसार 32 बच्चों का दाखिला शासकीय प्राथमिक विद्यालयों में करवाया। इसके अलावा 28 बच्चों जो आंगनवाड़ी जा रहे हैं, उन्हें भी नियमित रूप से जाने को प्रेरित किया गया। वर्तमान में 10 अप्रैल से झोपडिय़ों के बीच बरगद के नीचे ही सेवा भारती की मदद से संस्कार शिविर भी लगाया जा रहा है। इसमें खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाई करवाई जा रही है और नशे से दूर रहने का संकल्प भी दिलावाय जा रहा है। बच्चों और अभिभावकों के अनुसार गर्मियों में लग रही कक्षाओं से बच्चों के आत्मविश्वास और पूरे ही व्यक्तित्व में सकारात्मक सुधार आ रहा है। जुलाई से बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भी भेजेंगे। बच्चों में भी अब स्कूल जाने की रुचि बढ़ गई है।

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