
पेटलावद। (हरिश राठोड)
धधकते अंगारों पर आस्था का सैलाब गुजरा। धधकते अँगारों भरी राह भी आस्था के बल पर फूलों जैसी कोमल लगी। जब इसमें बच्चों, महिलाएं, युवतियां व पुरुषों ने चूल से निकल कर आस्था का परिचय दिया। पार्वती माता, हिगंराज माई, भोलेनाथ की जय के उद्घोष के साथ ग्राम करवड़, बावड़ी, टेमरिया में होली दहन के दूसरे दिन धुलेंडी को चूल समारोह का आयोजन हुआ। इसमें सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण उमड़े।
आस्था और विश्वास की डोर के सहारे ग्रामीणों ने दहकते अंगारो (चूल) पर चलकर परंपरा का निवर्हन किया और मन्नत उतारी। मौका था गल-चूल पर्व का। ग्रामीण अंचल में यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाया गया। चूल में अपनी मन्नत के अनुसार श्रद्धालु धधकते अंगारों से एक के बाद एक गुजरते नजर आए। इस नजारे को देखने के लिए यहां पर सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे। इस दौरान श्रद्धालु इस पर से गुजरते तो यहां मौजूद लोग माता के जयकारे लगा कर उनका साहस बढ़ाते दिख रहे थे। ग्रामीण मन्नतधारियों ने दहकते अंगारो से भरे गड्डे के बीच नंगे पैर गुजरते हुए अपनी मन्नत पूरी की। इसमें पड़ोसी जिले रतलाम व धार से भी ग्रामीण पहुंचे थें।
क्या है चूल परंपरा
करीब तीन-चार फूट लंबे तथा एक फीट गहरे गड्डे में दहकते हुए अंगारे रखे जाते है। माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का स्मरण करते हुए जलती हुई आग में से निकलते है। अच्छी फसल एवं शांति व सद्भावना के लिए यह परंपरा वर्षो से निभाई जा रही है।
