नागरिकता देने वाला कानून

नागरिकता संशोधन कानून सोमवार से देशभर में लागू हो गया. व्यापक तौर पर इसका समर्थन किया जा रहा है लेकिन कुछ स्थानों पर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं. खासतौर पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के मन में कुछ संदेह है. यह कानून 2019 में संसद में पारित हो गया था.ऐसे में इसका नोटिफिकेशन 2019 के बाद होना था या फिर इस पर अमल लोकसभा चुनाव के बाद यानी जून से होता. सरकार ने जिस तेजी से सोमवार को इसे लागू किया उससे अनावश्यक रूप से उसकी नीयत पर संदेह उत्पन्न होता है. हालांकि यह कानून किसी के विरोध में नहीं है और ना किसी की नागरिकता छिनता है. फिर भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कतिपय कट्टरपंथी संगठन विरोध कर रहे हैं. कोविड के पूर्व जब संसद में इसे पारित किया गया था तो शाहीन बाग़ और अन्य स्थानों पर उग्र प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में हिंसा भी हुई थी जिनमें आधा दर्जन लोगों की मृत्यु हुई थी. वहां पुलिस को फायरिंग और लाठी चार्ज करना पड़ा था. सरकार को चाहिए था कि इस पर अमल व्यापक चर्चा के बाद किया जाता.दरअसल, अच्छा होता कि यह कानून और पहले अमल में आ जाता, क्योंकि इससे संबंधित विधेयक को दिसंबर 2019 में ही संसद की स्वीकृति मिल गई थी. इतनी देरी से इस कानून को लागू करने का एक कारण उसका बड़े पैमाने पर विरोध किया जाना दिखता है.

यह विरोध इस शरारत भरे दुष्प्रचार की देन था कि यदि यह कानून लागू हुआ तो देश के मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी. इस दुष्प्रचार में कथित सिविल सोसायटी के लोग ही नहीं, बल्कि कई राजनीतिक दल भी शामिल थे. वे जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को भडक़ाकर उसे सडक़ों पर उतार रहे थे, जबकि इस कानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई लेना-नहीं.वास्तव में यह नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है. इस कानून के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पंथ-मजहब के आधार पर उत्पीडऩ का शिकार हुए उन अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जानी है, जो 2014 के पहले भारत आ चुके हैं. यह एक तथ्य है कि अफगानिस्तान हिंदुओं-सिखों से करीब-करीब खाली हो चुका है और पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में हिंदू, सिख और अन्य अल्पसंख्यक बुरी तरह उत्पीडऩ का शिकार हैं.

वे अपना अस्तित्व बचाने की हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके सामने जान गंवाने, पलायन करने या न चाहते हुए भी इस्लाम स्वीकार करने के अलावा और कोई उपाय नहीं. यह समय की मांग है कि 2014 के बाद भी तीनों पड़ोसी देशों से लुट-पिटकर भारत आए प्रताड़ित लोगों को राहत देने पर विचार किया जाए.

सीएए लागू होने के खिलाफ लोगों को भडक़ाने का काम करने वालों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.दिल्ली की नाक में दम करने वाले शाहीन बाग सरीखे किसी धरने को सहन नहीं किया जाना चाहिए.इसी के साथ उन राजनीतिक दलों को धिक्कारा जाना चाहिए, जिन्होंने इस कानून के विरोध के बहाने राजनीतिक रोटियां सेंकने और लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का काम किया.

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कुछ राजनीतिक दलों ने किस तरह ओछी राजनीति की, इसका प्रमाण यह है कि कुछ राज्य सरकारों ने विधानसभा में उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किए. वोट बैंक की सस्ती और गंदी राजनीति के चलते संघीय ढांचे के खिलाफ यह काम जानबूझकर इसके बाद भी किया गया कि किसी को नागरिकता देने में राज्य सरकारों की कहीं कोई भूमिका नहीं.यह केंद्र के अधिकार वाला विषय है.

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