म्यांमार और थाईलैंड में हाल में आए भूकंप ने भारी तबाही मचाई है और जान-माल का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है.ऐसे में पर्यावरणविद यह सवाल उठा रहे हैं कि प्रकृति के लगातार हो रहे विनाश का परिणाम भूकंप के प्रकोप के रूप में देखना पड़ रहा है. खासतौर पर हिमालय के प्लेटों पर विकास के नाम पर जिस तरह से निर्माण कार्य हो रहे हैं, उसके दुष्परिणाम दिखने लगे हैं. पहाड़ों को विकास के नाम पर काटने का काम सिर्फ भारत में नहीं हो रहा है, बल्कि चीन, नेपाल और म्यांमार में भी किया जा रहा है. इस वजह से हिमालय का पूरा क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से रेड जोन में आ गया है. दरअसल, भूकंप तब आते हैं जब पृथ्वी की पपड़ी (क्रस्ट) में तनाव बढ़ता है. पपड़ी बड़ी प्लेटों से बनी होती है जो धीरे-धीरे हिलती है और ये हलचल भूकंप का कारण बनती है. जब भूकंप आबादी वाले इलाके में आता है, तो इससे काफी नुकसान हो सकता है. बहरहाल, भारत का लगभग 59 $फीसदी हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील है इसलिए इस मुद्दे पर हमें ध्यान देना बेहद जरूरी है. भारतीय मानक ब्यूरो ने भूकंप के जोखिम के आधार पर देश को 4 भूकंपीय क्षेत्रों में वर्गीकृत किया है.पर्यावरण विशेषज्ञों की आपत्ति है कि पर्यटन बढ़ाने के नाम पर जिस तरह से जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कांक्रीट के जंगल और सडक़ें बनाई जा रही हैं, वो सब एक बड़े विनाश का कारण बनेंगी. इसके अलावा पहाड़ी नदियों पर बना रहे बांध भी खतरनाक संकेत दे रहे हैं. बहरहाल,विकास और पर्यावरण सरोकारों के बीच एक संतुलन बिंदु होना चाहिए. इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर हिमालय पर्वतमाला प्राधिकरण का गठन होना चाहिए, जिसमें पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल किए जाएं, ताकि यह प्राधिकरण पर्यावरण संरक्षण की चिताओं का ध्यान रखे. इस प्राधिकरण में वो सभी राज्य शामिल होना चाहिए जो हिमालय की तराई में आते हैं. जहां तक प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का सवाल है तो इस दिशा में केंद्र सरकार ने लगातार प्रयास किए हैं.
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल यानी एनडीआरएफ का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत किया गया था. इसके अलावा भी
सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जैसे सुरक्षा के नियम बनाना, पहले से चेतावनी देने वाला सिस्टम लगाना और खतरों का हिसाब लगाना. ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकि लोगों को सुरक्षा की जानकारी मिले, जोखिमों पर नजर रखी जा सके और भविष्य के भूकंपों के लिए पहले से तैयारी हो सके.यही नहीं भूकंप से बचाव के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है. नागरिकों को भी भूकंप के दौरान क्या करना चाहिए, इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए और सुरक्षा के उपायों का पालन करना चाहिए. जब ??लोग तैयार और जागरूक होते हैं, तो इससे नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है और जान बचाने में मदद मिल सकती है. केंद्र सरकार ने म्यांमार के भूकंप के बाद जिस तरह से एनडीआरएफ की प्रशिक्षित टीम भेजी और इस टीम ने वहां जिस तरह से आपदा प्रबंधन का काम किया उसकी प्रशंसा म्यांमार सरकार ने की है. भारत इस तरह की सहायता अनेक बार कई देशों को दे चुका है. हमारी एनडीआरएफ की टीम को अंतरराष्ट्रीय दर्जे का बल माना जाता है. बहरहाल,म्यांमार में भी भूकंप का कारण प्रकृति का विनाश ही है. जाहिर है म्यांमार और थाईलैंड के भूकंप से भारत को भी सबक लेने की जरूरत है.