गांधीसागर वन्यजीव अभ्यारण्य में नजर आए दो दुर्लभ ल्यूसिस्टिक बार हेडेड गूज़

एक साथ दो ल्यूसिस्टिक बार हेडेड गूज़ देखे जाने का भारत से पहला मामला

 

 

सिंगोली। मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभ्यारण्य में मध्यप्रदेश वन विभाग और टीम वाइल्ड वॉरियर द्वारा आयोजित सातवें बर्ड सर्वे के दौरान 8 फरवरी शाम को दो दुर्लभ ल्यूसिस्टिक बार हेडेड गूज़ देखे गए हैं । राजस्थान के पक्षी प्रेमी राजू सोनी ने गांधी सागर अभ्यारण्य स्थित लावडिय़ा तालाब पर सर्वे के दौरान इन दुर्लभ ल्यूसिस्टिक पक्षियों को देखा और अपने कैमरे में कैद किया हैं । सर्वे के दौरान नवीन, सुभांशु मिश्रा और वन विभाग के कर्मचारी भी साथ थे।

एक ही स्थान पर दो ल्यूसिस्टिक बार हेडेड गूज़ का देखे जाने का यह अत्यन्त दुर्लभ रिकॉर्ड हैं। पूर्व में अन्य पक्षियों में एल्बिनिज्म या ल्यूसिस्म के मामले रिपोर्ट किए गए हैं लेकिन बार हेडेड गूज़ में वह भी एक साथ दो पक्षियों में यह घटना पहली बार रिकॉर्ड की गई हैं ।

मेलेनिन नामक रंजकों की कमी या अधिकता के कारण किसी भी पक्षी का अपने सामान्य रंग से हटकर अलग रंग का नजर आना पारिस्थिकीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होता हैं और इन पक्षियों को देखे जाने की सूचना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होती हैं ।

पक्षियों में विभिन्न कारणों जैसे एल्बिनो, ल्यूसिस्म, इनो, डाईलूशन और प्रोग्रेसिव ग्रेइंग के कारण पंखों का रंग असामान्य रुप से हल्का या स$फेद हो जाता हैं । त्वचा या पंखों में मेलेनिन नामक रंजकों के पूर्णतया अभाव को एल्बिनिज्म कहते हैं, जबकि आंशिक रूप से मेलेनिन रंजकों के अभाव होने को ल्यूसिज्म कहा जाता हैं। ल्यूसिज्म में शरीर के कुछ भाग जैसे चोंच, पांव, आंख, पंजे आदि का रंग सामान्य रहता हैं और शरीर का अन्य भाग स$फेद हो जाता हैं। गांधीसागर अभ्यारण्य में नज़र आए यह दोनों बार हेडेड गूज़ ल्यूसिस्टिक किस्म के हैं । अपने असामान्य रंग के कारण ये पक्षी शिकारी की नजर में आसानी से आ जाते हैं और यह आसान शिकार बन जाते हैं । इसी कारण इनका जीवन असुरक्षित होता हैं।

बार हेडेड गूज , जिसे हिंदी में कदम्ब हँस या सरपट्टी सवन कहा जाता हैं , भारत में सर्दियों में आने वाला बड़ा प्रवासी पक्षी हैं। इसकी गर्दन व सिर का रंग सफेद होता है जिस पर काले रंग की दो चौड़ी धारियां होती हैं , जो छड़ की तरह होती है, इसी कारण इन्हें नाम बार हेडेड गूज कहा जाता हैं । शरीर के बाकी हिस्सों का रंग दूधिया सलेटी, चोंच व पंजों का रंग नारंगी पीला होता है। । यह पक्षी मुख्यत: कई प्रकार की घास ,जड़े, तना, बीज , फल एवं पानी के आसपास होने वाली वनस्पति को ही खाते हैं । यह पक्षी शाकाहारी होते हैं।

सर्दियों में यह पक्षी तिब्बत ,कजाकिस्तान ,मंगोलिया ,रूस आदि जगहों पर प्रजनन करता हैं और सर्दियों में विकट परिस्थियतियों से बचने एवं आवास और भोजन की तलाश में एक लंबा सफर तय करके हिमालय की ऊंची चोटियों को पार कर भारत में शीतकालीन प्रवास पर आते हैं । अपने इस प्रवास से पहले काफी अधिक भोजन करके अपने शरीर में काफी वसा जमा कर लेते हैं, जो इनके प्रवास में ऊर्जा की आपूर्ति को बनाए रखती हैं । भारत में सर्दियां व्यतीत करने के बाद वापस अपने प्रजनन स्थलों की तर$फ लौट जाते हैं ।

गांधीसागर वन्यजीव अभ्यारण्य में 7 से 9 $फरवरी तक मध्यप्रदेश वन विभाग और टीम वाइल्ड वॉरियर द्वारा आयोजित सातवें बर्ड सर्वे में देश के विभिन्न भागों से आए पक्षी विशेषज्ञों ने भाग लिया और ग्रैटर स्पॉटेड ईगल, मॉटेड वुड ऑउल, ग्रेट व्हाइट पेलिकन, वाइट नेप्ड वुडपेकर,अल्ट्रामरिन फ्लाईकैचर सहित 226 प्रजातियों के पक्षियों की उपस्थिति को रिकॉर्ड किया , जो की गांधीसागर वन्यजीव अभ्यारण की समृद्ध जैव विविधता और स्वस्थ पारिस्थिति की तंत्र का सूचक हैं ।

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