नौकरियों के सृजन, कौशल विकास के साथ महंगाई पर हो काबू करने के उपाय: मजूमदार

नयी दिल्ली 28 जनवरी (वार्ता) डेलाॅयट की अर्थशास्त्री डॉ. रुमकी मजूमदार ने आम बजट की तैयारियों के बीच सरकार से महंगाई को काबू में करने के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर व्यय बढ़ाने के अतिरिक्त नौकरियों के सृजन और कौशल विकास पर जोर दिये जाने की अपील की है।

सुश्री मजूमदार ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों या ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले कपड़ा, जूते और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों पर जोर दिया जाना चाहिए। प्रौद्योगिकी से जुड़े नवाचारों को संभव बनाने के लिए संसाधन आवंटित करें जिससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में मदद मिलने के साथ ब्लू-कॉलर नौकरियों (मैनुअल लेबर) की गुणवत्ता बढ़ती है। कौशल विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए नियोक्ताओं और कर्मचारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना चाहिए। इसमें नौकरी के लिए कोर्स तैयार करने और प्रशिक्षुता (अप्रेंटिसशिप) प्रदान के उद्देश्य से उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना भी शामिल हो सकता है।

उन्होंने कहा कि कौशल में कमी जैसी चुनौतियों का समाधान करने और बाजार की आवश्यकता वाले कौशल को उपलब्ध प्रतिभा के साथ जोड़ने के लिए एक व्यापक डेटाबेस विकसित किया जाए। विशेष रूप से ब्लू-कॉलर नौकरियों के लिए कोर्स का सर्टिफिकेशन सहायक होगा।

सुश्री मजूमदार ने कहा कि मुद्रास्फीति को काबू में करना प्राथमिकता होनी चाहिए। खाद्य कीमतों में अचानक बढ़ोतरी का समाधान निकालने और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए मूल्य श्रृंखला विकास परियोजनाओं जैसी दीर्घकालिक पहल शुरू की जा सकती हैं। ये उपाय खाद्य बाजार के आपूर्ति पक्ष को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। सरकार ऐसी नीतियां शुरू कर सकती है जो फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और पूरे साल खाद्यान्न की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जिला और ग्राम स्तर पर कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और गोदामों का एक नेटवर्क विकसित किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि डिजिटल मार्केटप्लेस को बढ़ावा दिया जाए जो ईएनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे प्लेटफॉर्म का विस्तार करे ताकि किसानों को खरीदारों तक सीधी पहुंच प्रदान की जा सके, जिससे बिचौलियों पर निर्भरता कम हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) जैसे खाद्य वितरण कार्यक्रम सबसे गरीब वर्गों को खाद्य पदार्थों की महंगाई से बचाने के लिए कुशलतापूर्वक काम करें। प्रत्यक्ष विपणन शुरू किया जाए जो निजी कंपनियों को विनियमित ढांचों के तहत किसानों से सीधे खरीद करने के लिए प्रोत्साहित करे। आपूर्ति श्रृंखला के बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने और खरीद दक्षता में सुधार करने के लिए निजी कंपनियों के साथ सहयोग की सुविधा प्रदान की जाए या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की शुरुआत की जाए। आपूर्ति श्रृंखलाओं का डिजिटलीकरण करने, इन्वेंट्री को ट्रैक करने और मौसम-आधारित मुश्किल स्थितियों की भविष्यवाणी करने के लिए प्रौद्योगिकी नवाचारों और समाधानों (जैसे ब्लॉकचेन और एआई) को बढ़ावा दिया जाए, जिससे नुकसान कम हो और पूर्वानुमान में सुधार हो

उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के समय में निर्यातकों को समर्थन की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को • ब्याज समतुल्यीकरण (इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन) और निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों और करों की छूट (आरओडीटीईपी) जैसी योजनाओं को आगे बढ़ाए जाने की लागत कम करने और भारतीय निर्यात की मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ब्याज समतुल्यीकरण योजना निर्यातकों को शिपमेंट से पहले और बाद के ऋण पर सब्सिडी प्रदान करती है, जिससे वित्तपोषण लागत को कम करने और वैश्विक बाजारों में भारतीय उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, आरओडीटीईपी योजना उत्पादन प्रक्रिया के दौरान लगाए गए शुल्कों और करों को वापस लौटाती है, लेकिन अन्य योजनाओं के तहत इसे वापस नहीं किया जाता। इस प्रकार, निर्यात किए गए सामानों की कुल लागत कम हो जाती है। इन योजनाओं का विस्तार करने से भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूती मिलेगी।

उन्होंने कहा कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रिसीसन मशीनरी और चिकित्सा उपकरणों जैसे ऊंचे मूल्य वाले विनिर्मित सामानों के निर्यात को प्रोत्साहित कर सकती है, जिनकी निर्यात में हिस्सेदारी में पहले से वृद्धि देखने को मिल रही है। वित्त वर्ष 2014 में उनकी हिस्सेदारी 17.6 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 29.5 प्रतिशत हो गई। ऋण तक पहुंच, ऋण गारंटी योजनाओं का विस्तार और निर्यात करने वाले एमएसएमई को रियायती निर्यात वित्तपोषण प्रदान किया जाए, जिन्हें अक्सर तरलता से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। निर्यात क्षेत्र में कार्यबल को अपस्किल (कौशल सुधार) करना महत्वपूर्ण होगा। कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे निर्यात के लिहाज से अहम उद्योगों में श्रमिकों को प्रशिक्षित करने से भारत को वैश्विक गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में मदद मिलेगी।

सुश्री मजूमदार ने कहा कि फिजिकल, डिजिटल और सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। भारत को उभरते बाजारों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पश्चिम पर निर्भरता कम करने के लिए अपने निर्यात बाजारों में विविधता लानी चाहिए। डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देकर ऐसा किया जा सकता है। स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन प्रदान करना मददगार होगा। इसके साथ ही किफायती स्वास्थ्य सेवा के लिए संसाधन आवंटित करें और स्वास्थ्य बीमा के कवरेज का विस्तार करना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा पेशेवरों को प्रशिक्षित करने और नियुक्त करने के लिए बजट आवंटन में वृद्धि की जानी चाहिए।

डॉक्टरों और पैरामेडिक्स की कमी को दूर करने के लिए चिकित्सा शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए। कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों से निपटने के लिए आरएंडडी और वैक्सीन अनुसंधान एवं कार्यक्रमों के लिए वित्त पोषण में बढ़ोतरी हाेनी चाहिए।

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