परिवारों की आंखों में छलके खुशी के आंसू
इंदौर: गणतंत्र दिवस पर 18 कैदियों को जेल से रिहाई मिली, जो उनके जीवन का सबसे सुनहरा पल साबित हुआ. ये कैदी कई वर्षों से सलाखों के पीछे थे और कुछ ने हत्या जैसे अपराधों की सजा भुगती थी, लेकिन उनके अपराधों के पीछे विभिन्न कारण थे. रिहाई पाने वाले सभी कैदी अच्छे व्यवहार और सुधारात्मक गतिविधियों में सक्रिय रहे थे. इस अवसर पर उन्हें करीब साढ़े तीन लाख रुपए की राशि चेक के माध्यम से दी गई. रिहाई के समय कैदियों के परिजनों की खुशी आंसुओं में बदल गई.
भाई को मौत के घाट उतारने का पछतावा
संपत्ति के झगड़े में अपने ही भाई की हत्या करने वाले सेकडिया पिता भूरासिंह ने नम आंखों से बताया कि उन्होंने जमीन के झगड़े में रिश्तों का खून कर दिया था. मगर अब जेल से रिहा होने के बाद अपराध की दुनिया से दूर रहने का संकल्प लिया है. उन्हें अब भी अपने ही भाई के खून से हाथ रंगने का अपराध हर पल याद आता है. अब वह शांत और सच्चा जीवन बिताने की कोशिश करेंगे.
लेन-देन की कहासुनी में बन गए हत्यारे
रिहा हुए एक अन्य कैदी संतोष पाटीदार ने बताया कि एक साधारण लेन-देन ने उसकी जिंदगी बदल कर रख दी. गांव के जवानसिंह से हुई कहासुनी ने खूनी मोड़ ले लिया और आवेश में उसने हत्या कर दी. मगर अब उन्होंने खुद से वचन लिया है कि वह मेहनत-मजदूरी करके अपनी गलती का प्रायश्चित जरुर करेंगे.
पारिवारिक विवाद में बिखरा परिवार
वहीं रिहा हुए कैदी शेख बाबर ने बताया कि उन्होंने अपने पिता शेख सईद के साथ मिलकर पारिवारिक विवाद के चलते अपने ही रिश्तेदार की हत्या कर दी थी. वह घटना अब तक उन्हें बेचैन कर रही है. उन्होंने कहा कि अब मैं परिवार के बचे हुए सदस्यों के लिए अच्छा जीवन बिताने का प्रयास करूंगा.
अब परिवार के साथ होगी नई शुरुआत
वहीं एक अन्य कैदी लालू पिता रामकिशन ने बताया कि वह केवल एक झगड़े में बीच-बचाव करने गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में उसे भी दोषी ठहरा दिया गया. मेरे दिल पर वह दर्द हमेशा रहेगा, लेकिन अब मैं अपने परिवार के साथ एक नई शुरुआत करूंगा.
बुजुर्ग कैदी की गुहार मुझे यहीं रहने दो
गिरधारी की स्थिति ने हर किसी को भावुक कर दिया. जब कैदियों की रिहाई हो रही थी उसी दौरान एक अन्य कैदी ने हर किसी को भावुक कर दिया. हत्या के आरोप में जीवन का अधिकांश हिस्सा जेल में बिताने वाले 85 वर्षीय गिरधारी पिता गंगाराम ने जेल अधीक्षक से कहा, अब मेरा कोई नहीं है, मुझे यहीं रहने दो, बाहर जाकर कहां जाऊंगा? इस पर जेल अधीक्षक ने उन्हें वृद्धाश्रम भिजवाने का वादा कर अपना वादा भी निभाया.
बहू की आत्महत्या ने बदल दी जिंदगी
रिहा होने वाले कैदियों में बाबूलाल पिता बलदेवप्रसाद सैनी ने बताया कि मेरी बहू ने आत्महत्या की थी, लेकिन उस घटना में मुझे हत्यारा ठहराया गया, मैं निर्दोष था, लेकिन सजा भुगतनी पड़ी. अब मैं अपराध से दूर रहकर अपने बच्चों को एक अच्छा भविष्य देने की कोशिश करूंगा.
अपनों की रिहाई पर छलके आंसू
गणतंत्र दिवस पर जेल से रिहा होते ही कैदियों के परिवारों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. एक कैदी की बेटी ने अपने पिता को देखते ही गले लगा लिया और फूट-फूटकर रोने लगी. वहीं बेटे अपने पिता के चरण स्पर्श कर खुशी से झूम उठे. रिहा हुए कैदियों ने अपने परिवारों को गले लगाते हुए वादा किया कि वे अपराध से दूर रहेंगे और समाज में एक नई पहचान बनाएंगे.
एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए
सभी कैदियों ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया है. यह उन्हें अच्छी तरह समझ में आता है, और साथ ही उनके परिवारों ने जो कठिनाइयाँ सहन की हैं, वह भी उन्हें महसूस करना चाहिए. अब, उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर जेल में जो कुछ भी सीखा है, उसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में लागू करके एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए.
– अलका सोनकर, जेल अधीक्षक