नीमच की पुत्री भावना तिवारी ने अंतर्राष्ट्रीय गीता सम्मेलन में जीता श्रेष्ठ सर्वश्रेष्ठ शोध पुरस्कार  

नीमच। जिले के चल्दु गांव की पुत्री भावना तिवारी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा में आयोजित 9वीं अंतर्राष्ट्रीय गीता विषय पर अपनी प्रस्तुति से सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र प्रस्तुति पुरस्कार हासिल किया। इस सम्मेलन में देश-विदेश के विद्वानों और शोधकर्ताओं ने पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान पर चर्चा की। भावना ने अपने शोध में बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत, जैसे निष्काम कर्म और प्रकृति के प्रति सम्मान, पर्यावरणीय असंतुलन को दूर करने में सहायक हैं। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया कि अंधाधुंध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग, जल संकट और जैव विविधता का नुकसान हो रहा है। गीता के संदेश संयम और संतुलित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देते हैं, जो स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

भावना ने कहा कि हर व्यक्ति छोटे-छोटे कदम जैसे पौधारोपण, पानी की बचत, और ऊर्जा संरक्षण के जरिए बड़ा बदलाव ला सकता है। उनका शोध इस बात को रेखांकित करता है कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।सम्मेलन में भावना को उनकी शोध प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि गीता के संदेशों को आधुनिक संदर्भ में समझकर पर्यावरणीय समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। भावना ने इस उपलब्धि का श्रेय अपने शिक्षकों, परिवार में नीमच जिले के छोटे से ग्राम चंल्दू निवासी अपने परिवार दादाजी मदन लाल जी तिवारी व पिता बद्रीलाल जी माता गायत्री देवी जी तिवारी को बचपन में ही गीता पाठ करते देखकर स्वयं भी गीता पाठ किया और प्रेरणा ली और कहा, गीता हमें केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन नहीं देती, बल्कि जीवन के हर पहलू में संतुलन स्थापित करने की शिक्षा देती है। यह शोध न केवल पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान का प्रयास है, बल्कि युवाओं को जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा भी देता है। नीमच के नागरिकों ने भावना की इस उपलब्धि पर गर्व व्यक्त करते हुए इसे जिले और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया। भावना का यह कदम दिखाता है कि यदि हम अपने प्राचीन ज्ञान को आधुनिक समस्याओं के समाधान के लिए उपयोग करें, तो एक सकारात्मक भविष्य का निर्माण संभव है। आगे जीवन में क्या लक्ष्य है प्रश्न के उत्तर में बताया कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से गीता की शिक्षा का समाज कार्य में क्या प्रभाव हो पीएसजी करते हुए इसे पाठ्यक्रम में लागू करने के लिए अनुसंधान जारी है जिसमें निस्वार्थ भाव से समाज सेवा, नैतिकता, आदर्श संस्कार प्रमुख होंगे।

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