इंदौर:आम तौर पर देखा गया है कि जब भी किसी कंपनी द्वारा जनसुविधा के लिए कोई वस्तु बाज़ार में लॉच की जाती है तो उसमें सरकार को आर्थिक लाभ मिलता है. अगर वाहन की बात की जाए तो लोकल ट्रांसपोर्ट वाहनों के लॉच पर शासन को बड़ा मुनाफा होता है.कुछ ही महिनों पहले कुछ कंपनियों द्वारा ई-रिक्शा बाज़ार में लॉच की गई. यहां ईरिक्शा आम जनता की सुविधा के लिए तो थी ही सही साथ ही बे-रोज़गारों के लिए रोज़ी रोटी का ज़रिया भी बनी.
शुरूआत में यह सब ठीक था लेकिन धीरे-धीरे अब इसकी संख्या बढ़ गई है. नतीजा यह हुआ कि ई-रिक्शा चालकों के बीच स्पर्धा बढ़ गई और धंधे चौपट हो गए. इतना ही नहीं शहर की सड़कों पर ई-रिक्शा की तादाद इतनी हो गई कि यातायात बाधित होने लगा. बाज़ार में यहां भी देखा गया है कि अधिकांश लोकल यात्री सिटी बासों में यात्रा कर रहे है, जिसके चलते ई-रिक्शा खाली दिखाई दे रही थी.
इनका कहना है
ई-रिक्शा का धंधा कम चल रहा है. पांच-पांच रूपए में छोड़ना पड़ता है. अभी लगन सरा शुरू होगी तो ही बाज़ार में भीड़ बढ़ेगी. उसी में हमारी भी गाड़ी चल पड़ेगी हालांकि पूरे साल ऐसा नहीं चलता.
– मनीष बड़ेले, चालक
ई-रिक्शा में अभी बहुत ही मंदीवाड़ा है. अधिकतर लोकल यात्री सिटी बस में जाते हैं. हमारे लिए जो एक सवारी बचती है उसके लिए ही चार ई-रिक्शा खड़े रहते हैं. आधा दिन खाली ही समझो.
– अजय यादव, चालक
सैकड़ों लोगों को रोज़गार देते हुए सरकार ने लोगों इतने ई-रिक्शा थमा दिए कि चालाकों में होड़¸ मच गई और किराया दर गिर गई. इससे चालकों को घाटा होता है. घर चलाना भी मुश्किल होता है.
– मोहम्मद साबिर अंसारी नागरिक