रोजगार के लिए पलायन की मजबूरी खत्म हो

ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने से देश में पिछले कुछ वर्षों में आंतरिक पलायन बढ़ा है. इस पलायन को रोकने के लिए स्वरोजगार की योजना को मजबूती के साथ लागू किया जाना चाहिए. दरअसल,कोविड महामारी के दौरान आंतरिक पलायन और भी ज्यादा उजागर हो गया. कोविड से पता चला कि हमारे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की स्थिति कितनी खराब है.बहरहाल,

वर्ष 2005 में कुल वैश्विक आबादी का 12 प्रतिशत हिस्सा (76.3 करोड़ लोग) अपने मूल जन्म स्थान से बाहर जीवन-यापन कर रहा था. दरअसल,देश का आर्थिक विकास तेज होने के साथ ही ग्रामीण से शहरी इलाकों की तरफ पलायन बढ़ गया है.दुनिया में आज उच्च आय वाले जो भी देश हैं, उन सभी में 19 वीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी के मध्य तक तेज आर्थिक विकास के साथ ग्रामीण से शहरी इलाकों की तरफ पलायन भी खूब हुआ.वर्ष 2016 में चीन में 7.7 करोड़ प्रवासी मजदूर रोजगार की तलाश में एक प्रांत से दूसरे प्रांत में गए. चीन की तुलना में भारत में वर्ष 2011 से 2016 के दौरान लगभग 90 लाख लोग ही एक राज्य से दूसरे राज्य गए.भारत में राज्यों के बीच पलायन चीन ही नहीं अमेरिका की तुलना में भी काफी कम है. अमेरिका के जनगणना ब्यूरो के अनुसार अमेरिका में 2021 में राज्यों के बीच 79 लाख लोगों का पलायन हुआ. हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका की आबादी 34 करोड़ है, जो भारत की कुल आबादी के एक चौथाई से भी कम है.

देश में आंतरिक पलायन के रुझान का ‘400 मिलियन ड्रीम्स’ में उल्लेख किया गया है.400 मिलियन ड्रीम्स प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का शोध पत्र है, जो दिसंबर 2024 में जारी हुआ है.विवेक देवराय और देवी प्रसाद मिश्रा द्वारा संयुक्त रूप से लिखे इस पत्र में पलायन पर व्यापक आंकड़े उपलब्ध कराए गए हैं.इस पत्र में भारतीय रेल की अनारक्षित टिकट प्रणाली, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के टेलीफोन उपभोक्ता रोमिंग और जिला-स्तरीय बैंकिंग से जुड़े आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. ये सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियां हैं क्योंकि बड़े पैमाने पर विस्तृत पलायन के आंकड़े केवल जनगणना के समय मिल पाते हैं. आखिरी बार जनगणना वर्ष 2011 में हुई थी. गैर-उपनगरीय यूटीएस 2 श्रेणी यात्रियों की संख्या पर मिले नए आंकड़ों से ‘400 मिलियन ड्रीम्स’ में निष्कर्ष निकाला गया है कि 2023 में प्रवासियों की संख्या 40.2 करोड़ (देश की आबादी की 28.9 प्रतिशत) थी. यह आंकड़ा 2011 की जनगणना में उपलब्ध कराए गए 45.6 करोड़ (कुल आबादी की 37.6 प्रतिशत) की तुलना में कम था.वर्ष 2011 से 2023 के बीच आंतरिक पलायन में वास्तव में कितनी कमी आई इस पर माथापच्ची किए बिना हमें स्वीकार करना चाहिए कि देश में आंतरिक पलायन उतनी तेजी से नहीं हो रहा है, जितनी तेजी से होने की आशंका थी. राज्यों के बीच पलायन को बढ़ावा देने से न केवल श्रम बाजार की क्षमता बढ़ेगी बल्कि राष्ट्रीय अखंडता को भी बल मिलेगा. बेहतर रहन-सहन की खोज में सुनियोजित शहरों की तरफ ज्यादा पलायन को हमारे भविष्य के सपने के अभिन्न हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए. कुल मिलाकर रोजगार के लिए हो रहा पलायन तभी कम हो सकता है, जब रोजगार के अवसर इस जिले में उपलब्ध हो. इस मामले में जिला स्तर पर विशेषज्ञताओं को पहचाना जाना चाहिए और उसे हिसाब से औद्योगीकरण की कार्य योजना बनानी चाहिए. महात्मा गांधी ने भी ग्राम स्वराज की अवधारणा इसी दृष्टि से पेश की थी कि गांवों से पलायन कम से कम हो. यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वो अपने जन्म स्थान को छोडऩा नहीं चाहता. उसे अपने जन्म स्थान से भावनात्मक लगाव रहता है. यदि उसे रोजगार भी वही उपलब्ध हो तो फिर वह पलायन क्यों करेगा ? जाहिर है स्वरोजगार की योजना इस मामले में कारगर साबित हो सकती है.

 

 

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