कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आखिर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी. पिछले कई महीने से वे जिस तरह के जद्दोजहद से गुजर रहे थे, नीतिगत मुद्दों पर भी एक तरह के ऊहापोह और अस्पष्टता के शिकार दिख रहे थे, उससे साफ था कि उनके सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका सामना कर पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था. बहरहाल,उनके इस्तीफे से उम्मीद है कि अब कनाडा और भारत के संबंध फिर से पटरी पर आएंगे. हालांकि यह एकदम नहीं होगा और पूरी तरह से भी नहीं होगा लेकिन जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरह की स्थितियां पैदा कर दी थी वैसी स्थितियां शायद ही दोबारा घटित हों. जहां तक जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे का सवाल है तो एक ओर, वे कनाडा में अपने नेतृत्व के प्रति बढ़ते असंतोष, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों का कोई उचित हल पेश नहीं कर पा रहे थे, तो दूसरी ओर विदेश नीति के मामले में भी उनके रुख पर कई हलकों में हैरानी जताई जा रही थी. दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बाद जस्टिन ट्रूडो को अपने पद पर बने रहना मुश्किल लग रहा था. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते. ट्रूडो ने डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात कर उन्हें मनाने की कोशिश भी की थी लेकिन जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने उनका सार्वजनिक रूप से अपमान किया उसके बाद उन्हें लग गया था कि ट्रंप के रहते उन्हें मुश्किल होगी. कनाडा की भौगोलिक, राजनीतिक और कूटनीतिक स्थिति ऐसी है कि उसे अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता है. जाहिर है डोनाल्ड ट्रंप के रहते जस्टिन ट्रूडो के सामने बेहद सीमित विकल्प थे. ऐसे में उन्होंने त्यागपत्र देना उचित समझा. जहां तक भारत – कनाडा संबंधों का सवाल है तो अपने आग्रहों और नाहक जिद की वजह से ट्रूडो ने लगातार हालात बिगडऩे दिए. उन्होंने खालिस्तानी समर्थकों और भारत विरोधियों के तुष्टीकरण की पराकाष्ठा कर दी. यहां तक कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर अनर्गल आरोप लगाए. जब उनसे सबूत मांगे गए तो उन्होंने कहा कि उनके पास कोई सबूत नहीं है. कनाडा जैसे विकसित देश में जस्टिन ट्रूडो जैसा गैर जिम्मेदार प्रधानमंत्री शायद ही कभी कोई हुआ होगा.बहरहाल, अब यह देखना होगा कि ट्रूडो के बाद कनाडा में सत्ता का नया समीकरण आंतरिक और विदेश नीति के मोर्चे पर क्या रुख अपनाता है ? दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने भारत और कनाडा के ऐतिहासिक संबंधों को जिस मोड़ पर पहुंचा दिया है वहां से वापस लाना उनके उत्तराधिकारी के लिए आसान नहीं होगा. जहां तक भारत का सवाल है तो ट्रूडो ने ऐसी स्थिति पैदा करती थी कि कनाडा के साथ कूटनीतिक रिश्ते रखना भारत के लिए मुश्किल हो गया था.दरअसल,जब जून 2023 में कट्टरपंथी सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर, जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित किया था, की हत्या में शीर्ष भारतीय राजनयिकों की संलिप्तता के आरोप कनाडा सरकार द्वारा लगाये गए. एक तरह से तत्कालीन कनाडा सरकार खालिस्तानी समर्थकों के हाथों की कठपुतली बनी हुई थी.बहरहाल, जस्टिन ट्रूडो के त्यागपत्र के बाद स्थिति बदलने की उम्मीद है. नई कनाडा सरकार भारत के साथ रिश्ते सुधारने की पहल करेगी. दरअसल,भारत से रिश्ते सुधारना कनाडा के लिए भी बहुत जरूरी है क्योंकि कनाडा की अर्थव्यवस्था में भारत से कनाडा जाकर पढऩे वाले छात्रों की बहुत बड़ी भूमिका है. कनाडा की अर्थव्यवस्था जिस स्थिति में पहुंच गई है, वहां से उसे निकालने के लिए नई सरकार को भारत से अपने संबंध सुधारने ही होंगे. इसके अलावा 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने का असर भी नई कनाडा सरकार पर होगा. ट्रंप प्रशासन यदि आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति यदि लागू करता है तो कनाडा की नई सरकार के लिए खालिस्तानी तत्वों का समर्थन करना संभव नहीं रह जाएगा. ऐसे में उम्मीद है कि भारत और कनाडा के रिश्ते सुधरेंगे.
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