देश में अब कुपोषण पर फोकस हो

भारत ने भूख के खिलाफ जंग लगभग जीत ली है. लेकिन अल्प पोषित और कुपोषित संख्या में कमी नहीं आ रही है. इसलिए अब केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कुपोषण की समस्या से किस तरह देश को निजात मिले. भूख से जंग में केंद्र सरकार की लाभार्थी योजनाओं विशेष कर मुफ्त राशन की योजना ने बड़ी भूमिका निभाई है. अब सरकारों को कुपोषण दूर करने के बारे में फोकस करना होगा.दरअसल,खाद्य सुरक्षा एवं पोषण की स्थिति (सोफी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2020 और 2022 के दरम्यान 7.4 करोड़ लोग अल्प पोषण के शिकार थे. 2023 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों के बीच भारत को 111वां स्थान दिया गया.यह सूचकांक बताता है कि किस देश के बच्चों में बौनेपन, दुर्बलता की समस्या और पोषण की कमी बहुत अधिक है. इससे यह भी पता चलता है कि उस देश की आबादी को रोजाना पोष्टिक भोजन मयस्सर नहीं हो रहा है. खास तौर पर महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या ज्यादा है.

हाल ही में घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) 2022-23 के आंकड़े जारी किए गए, इस सर्वेक्षण के अनुसार भी गरीबों की रेखा से नीचे रहने वाले अधिकांश लोगों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो रहा है.सर्वेक्षण में लोगों के दैनिक आहार के तरीके पर भी आंकड़े जुटाए गए हैं. इन आंकड़ों के अनुसार ज्यादातर लोग (56.3 प्रतिशत) रोजाना तीन बार भोजन करते हैं, जबकि 42.8 प्रतिशत दो बार भोजन करते हैं.केवल 0.1 प्रतिशत को रोजाना एक बार भोजन मिलता है. कुल मिलाकर 99.1 प्रतिशत लोग रोजाना दो या तीन बार भोजन कर पाते हैं. हालांकि ऐसे लोगों की भी काफी संख्या है जो स्वेच्छा से दिन में एक बार भोजन करते हैं. यह समझना जरूरी है कि ‘आहार’ या भोजन में स्नैक्स, नाश्ता या अन्य हल्के जलपान नहीं आते हैं. इससे संकेत मिलता है कि भारत में भूख की समस्या कम हुई है, लेकिन कुपोषण एक बड़ी समस्या है.दरअसल, 140 करोड़ आबादी वाले देश में 2.5 प्रतिशत हिस्सा कुपोषित है. यानी देश के लगभग 3.5 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं.

सोफी 2024 रिपोर्ट में भूख के बारे में जानकारी नहीं है मगर इसमें यह जरूर कहा गया है कि 7.4 करोड़ लोगों में पोषण की कमी है. यानी इनका खानपान कुपोषित लोगों से थोड़ा अच्छा है.

घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण 2022-23 में आहार की गुणवत्ता पर विचार नहीं किया गया, जबकि यह बहुत मायने रखती है. भूख को पूरी तरह समझने के लिए भोजन की मात्रा ही नहीं उसमें मौजूद पोषण की जानकारी मिलना भी जरूरी है. इसलिए भोजन की खपत और दिन में उसकी आवृत्ति अहम जानकारी उपलब्ध कराती है मगर आंकड़ों में भोजन की सामग्री और गुणवत्ता के बारे में विस्तृत जानकारी की कमी खलती है. दरअसल,आहार में मौजूद पोषण के बारे में जानने के लिए यह जानकारी जरूरी है. इसलिए भूख और खाद्य असुरक्षा का आकलन अलग-अलग होना चाहिए क्योंकि भूख भोजन की मात्रा से जुडी है और खाद्य असुरक्षा उसकी गुणवत्ता यानी उसमें मौजूद पोषण से. उपलब्ध आंकड़े भूख से छुटकारे का संकेत देते हैं, लेकिन इससे कुपोषण या अल्प पोषित लोगों की संख्या का पता नहीं चलता. जाहिर है सरकार को अल्प पोषित और कुपोषित लोगों की संख्या के बारे में अलग से डाटा जारी करना चाहिए.

भारत में केंद्र एवं राज्य सरकारों गरीबों को नि:शुल्क अनाज उपलब्ध कराती हैं. मगर खाद्य सुरक्षा का असली मतलब पोषक तत्वों से भरपूर और स्थायी भोजन से है. भूख पूरी तरह खत्म करने के लिए हमें ऐसी नीतियां चाहिए, जो पोषक तत्वों से भरपूर भोजन के वितरण, उपलब्धता तय करने और उसे किफायती रखने में मददगार हो सकें. इसके लिए क्षेत्रीय विषमताओं की जानकारी होनी चाहिए और उनके हिसाब से कारगर समाधान तैयार होने चाहिए. कुल मिलाकर खाद्य सुरक्षा के बाद अब सरकारों का फोकस पोषण और पोष्टिक आहार की तरफ होना चाहिए.

 

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