ग्वालियर: भारतीय संस्कृति में मेले गहरे तक रचे-बसे हैं। मेले केवल आमोद-प्रमोद के ही नहीं, मेल-जोल के सशक्त माध्यम बनते हैं। मेले की स्मृतियों को सजोने में भी भारतीय जनमानस की गहरी रुचि रहती आई है। मेले में लगने वाले फोटो स्टूडियो इन स्मृतियों को संजोने में महती भूमिका निभाते थे। हालांकि आधुनिक डिजिटल युग में मोबाइल फोन की क्रांति के मेले के फोटो स्टूडियो अब इतने प्रासंगिक नहीं रहे हैं। फिर भी कुछ लोग मेले में फोटो स्टूडियो की परंपरा को आज भी निभाए जा रहे हैं। इस साल के ग्वालियर व्यापार मेले में उत्तरप्रदेश के मेनपुरी शहर के निवासी अवधेश सिंह भदौरिया ने फोटो स्टूडियो लगाया है।
मेले की छत्री नं.-20 में अवधेश सिंह ने आकर्षक ढंग से भदावर कलर स्टूडियो सजाया है। इस स्टूडियो में फोटो खिंचवाने के लिए फूलों का झूला, सिंघासन, सीढ़ियाँ, कार, टैडी वियर इत्यादि सहित अन्य प्रकार के ऐसे मंच बने हैं जहाँ सैलानी फोटो खिंचवाकर मेले की यादों को चिरस्थायी बना सकें। अवधेश सिंह बताते हैं कि पिछले लगभग 40 साल से हम ग्वालियर व्यापार मेले में अपना स्टूडियो लगाते आए हैं। कोरोनाकाल को छोड़कर हर साल हमने अपना स्टूडियो यहां पर लगाया है। पहले हम पूजा स्टूडियो के नाम से स्टूडियो लगाते थे। अब उसका नाम बदलकर भदावर स्टूडियो कर लिया है।
मेले की स्टूडियो परंपरा के प्रति अपना लगाव व आत्मीयता जाहिर करते हुए अवधेश सिंह बोले कि हालांकि अब इससे बहुत ज्यादा आमदनी नहीं होती, पर इस व्यवसाय को चाहकर भी नहीं छोड़ पा रहा हूँ। भीतर मन में इस काम से जुड़ाव हो गया है। वे कहते हैं कि पहले हमारे स्टूडियो में फोटो खिंचवाने के लिये सैलानियों की लाइन लगा करती थी। यहाँ तक टोकन बांटने पड़ते थे। पर अब ऐसी स्थिति नहीं रही है। फिर भी शहरी विशिष्ट व्यक्ति व ग्रामीणजन अभी भी फोटो खिंचवाने आते हैं।
सैलानी हमें बताते हैं कि मेले के स्टूडियो में फोटो खिंचवाने और उन्हें संजोकर रखने का मजा ही कुछ और है। अवधेश कहते हैं कि वे ग्वालियर मेला ही नहीं उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं अन्य राज्यों के शहरों में लगने वाले मेलों में भी अपना स्टूडियो लगाते हैं।आमदनी के बारे में पूछे जाने पर अवधेश भावुक हो गए और बोले कि स्टूडियो की यह परंपरा हम लाभ के लिये नहीं यहां होने वाले मेलजोल की वजह से आगे बढ़ाए जा रहे हैं। उनका कहना था कि यहां कुछ लोग ऐसे हैं जो मुझे वर्षों से मेले में आकर ही मिलते हैं और अगले मेले का इंतजार करने लग जाते हैं।
