
ग्वालियर। ग्वालियर के सबसे बड़े सरकारी जयारोग्य अस्पताल के डॉक्टर्स की लापरवाही मामले में मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेकर ग्वालियर कलेक्टर को 8 सप्ताह में जवाब पेश करने का अल्टीमेटम दिया है। पीड़ित परिवार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से गुहार लगाइ है कि दोषियों पर सख्त करवाई की जाए।
मुरैना जिले का रहने वाला नितिन शर्मा अपने छोटे भाई धीरज शर्मा को व्हीलचेयर पर लेकर ग्वालियर कलेक्टर जनसुनवाई में पहुंचा था, जहां उसने ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान को अपना शिकायती आवेदन देते हुए पूरा घटनाक्रम बताया था। जिस पर कलेक्टर ने जयारोग्य प्रबंधन से जबाब मांगा था। मामले की शिकायत मानवाधिकार आयोग में भी की गई थी जिस पर आयोग ने संज्ञान लेकर ग्वालियर कलेक्टर को जवाब तलब किया है।
कलेक्टर को आठ सप्ताह के अंदर मामले में अपना जवाब पेश करना होगा। ऐसे में एक बार फिर नितिन शर्मा दोषियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर कलेक्टर जनसुनवाई में पहुंचा। जहां कलेक्टर ने मानवाधिकार आयोग के नोटिस और शिकायती आवेदन पर तत्काल जयारोग्य अस्पताल प्रबंधन को एक्शन लेने के लिए कहा है।
पीड़ित के भाई नितिन शर्मा ने अपने भाई धीरज को न्याय दिलाने के लिए बड़ा संकल्प भी लिया है। उसने अपने जूते और चप्पल भी त्याग दिए हैं और नंगे पैर ही न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है। नितिन ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से गुहार लगाई है कि वह मामले पर संज्ञान लेकर तत्काल पीड़ित परिवार को न्याय दिलाए।
मामले में ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान का कहना है कि शिकायतकर्ता ने जो अपनी आपबीती दस्तावेजों के साथ बताई है, साथ ही मानवाधिकार आयोग के पत्र पर संज्ञान लिया है। उसे देखते हुए यह स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर लापरवाही को दर्शा रहा है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज के डीन से मामले से जुड़े हुए सभी मेडिकल रिकॉर्ड और लापरवाही के आरोपों पर जवाब मांगा गया है। जवाब संतोषजनक न होने पर जांच के आधार पर कार्रवाई की बात भी कलेक्टर रुचिका चौहान ने कही है।
नितिन का छोटा भाई धीरज शर्मा विकलांग है। उसके सिर से पेट तक बी पी संट डला हुआ है। जिसके अचानक काम करना बंद कर देने पर उसकी हालात बिगड़ गई थी। मुरैना से वह इलाज के लिए उसे सरकारी जयारोग्य अस्पताल लेकर पहुंचा। जहां न्यूरो सर्जरी विभाग में भर्ती रहने के दौरान उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी इस दौरान जब ऑपरेशन करने के लिए ड्यूटी डॉक्टर्स से कहा गया तो उन्हें बताया गया कि उन्हें अपने मरीज को सरकारी सुपर स्पेशिलिटी के डॉक्टर आशीष श्रीवास्तव को दिखाना होगा।लेकिन डॉक्टर ने मरीज को देखने से ही मना कर दिया और कहा कि उन्हें प्राइवेट क्लीनिक पर ही अपने मरीज को लाना होगा या फिर सोमवार के दिन शासकीय अस्पताल में ओपीडी के दौरान ही वह मरीज को देखेंगे। जब उसके भाई की ज्यादा हालत बिगड़ने लगी तो वह उसे लेकर दिल्ली रवाना हो गया। जहां एम्स अस्पताल में भर्ती न होने पर वह अपने भाई को गुजरात के सिविल हॉस्पिटल लेकर पहुंचा। जहां 1 महीने तक भर्ती रहते हुए उसके सिर और पेट के तीन ऑपरेशन हुए, तब कहीं जाकर उसकी जान बच सकी। लेकिन ग्वालियर के सरकारी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और अपने स्वार्थ के लिए अपनी प्राइवेट क्लीनिक पर इलाज कराने का दबाव बनाया।
