यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में ही करीब 98 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक प्रदूषित माहौल में रहते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर में करीब 90 प्रतिशत बच्चे, जिनकी कुल संख्या लगभग 1.8 अरब है, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है.भारत के कई इलाकों में इन दिनों वायु प्रदूषण को लेकर स्थिति बहुत विकराल है.दिल्ली और आसपास के कई क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर बनी हुई है, जहां कुछ जगहों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार है, जबकि यह 50 से कम रहना चाहिए.वैसे वायु प्रदूषण अब एक वैश्विक समस्या बन चुका है, जिससे कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां जन्म ले रही हैं और लाखों लोग असमय ही काल के ग्रास बन रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ फेडरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण के कारण दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों में करीब 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है. रिपोर्ट के अनुसार हवा में छोटे प्रदूषक (अदृश्य कण) हृदय की लय, रक्त के थक्के जमने, धमनियों में ब्लॉक बनने और रक्तचाप को प्रभावित कर रहे हैं. वायु प्रदूषण का खतरा सबसे ज्यादा छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर बना है क्योंकि वे बहुत संवेदनशील होते हैं और जहरीली हवा की चपेट में जल्दी आते हैं.दरअसल वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चे ज्यादा तेज गति से सांस लेते हैं, जिससे उनके शरीर में प्रदूषण के कण तेजी से तथा ज्यादा मात्रा में चले जाते हैं. इसी कारण वायु प्रदूषण छोटे बच्चों को बहुत जल्दी अपनी चपेट में लेता है और उनमें अस्थमा से लेकर फेफड़ों के संक्रमण तक कई बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है. वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है.बच्चों में प्रदूषित हवा के कारण निमोनिया, फेफड़ों की समस्याएं, कमजोर दिल, ब्रोंकाइटिस, साइनस और अस्थमा जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है.वायु प्रदूषण के कारण समय पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं और ये दोनों ही शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं.अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है.बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर दुनियाभर में समय-समय पर परेशान करने वाली रिपोर्टें सामने आती रही हैं. किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है, लेकिन बेहद चिंताजनक स्थिति है कि कई अध्ययनों में बताया जा चुका है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है. एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है.
कुल मिलाकर प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर है. ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल ठंड के दिनों में ज्यादा होती है. अब तो स्थिति यह है कि वर्षभर प्रदूषण से जनजीवन प्रभावित हो रहा है. इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को तो गंभीर प्रयास करने ही चाहिए लेकिन आम जनता के बीच भी व्यापक जन जागरण की जरूरत है. जाहिर है अभी भी देश की जनता पर्यावरण प्रदूषण के प्रति उतनी जागरूक नहीं है जितनी होना चाहिए.