झांसी मेडिकल कॉलेज में हाल ही में 10 मासूम बच्चों की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में मृत्यु हो गई। दरअसल निर्मम सरकारी लापरवाही की भेंट ये मासूम जिंदगियां चढ़ गई. यह घटनाक्रम जितना शर्मनाक है, उतना ही चिंता जगाने वाला है. इससे पता चलता है कि हमारा सिस्टम कितना खोखला और भ्रष्ट है. यह लापरवाही केवल झांसी मेडिकल कॉलेज के सिस्टम की नहीं है, बल्कि देश के सभी सरकारी अस्पतालों की कमोबेश यही स्थिति है. यदि सभी सरकारी अस्पतालों का सेफ्टी और मेंटेनेंस ऑडिट किया जाए तो पता चलेगा कि जो हाल झांसी का है वही दूसरे सरकारी अस्पतालों का भी है. दरअसल,झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज में नवजात गहन चिकित्सा कक्ष में लगी आग से दस बच्चों की मौत यही बता रही है कि प्रमुख अस्पतालों तक में सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं हैं. दुर्भाग्य से इस नामी एवं पुराने अस्पताल में भी सुरक्षा के समुचित प्रबंध नहीं थे. इसका संकेत इससे मिलता है कि नवजात गहन चिकित्सा कक्ष में लगे सेफ्टी अलार्म ने काम नहीं किया. ऐसे अति संवेदनशील स्थल में एक तो ऐसे उपाय होने चाहिए कि आग लगने ही न पाए और यदि किसी कारण लग भी जाए तो उस पर तत्काल काबू पाया जा सके.यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि इस अस्पताल में ऐसे उपाय नहीं थे और शायद इसलिए नहीं थे, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि आम तौर पर अस्पताल फायर सेफ्टी और इलेक्ट्रिकल सेफ्टी आडिट में लापरवाही बरतते हैं. इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि झांसी मेडिकल कालेज में दस शिशुओं की मौत की गहन जांच के आदेश दे दिए गए हैं, क्योंकि अब तक का अनुभव यही बताता है कि ऐसे मामलों की जांच से कोई सबक नहीं सीखा जाता.यह पहला मामला नहीं है, जब किसी अस्पताल में आग लगने से मरीजों की जान गई हो.
अतीत में कई अस्पतालों के गहन चिकित्सा कक्ष में आग लगने से मरीजों की जान जा चुकी है.कोविड महामारी के दौरान जब गुजरात के अस्पतालों में आग लगने से कई मरीजों की जान गई थी तो इसका संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया था. उसने अस्पतालों को फटकार लगाते हुए कहा था कि वे पैसे कमाने का जरिया बन गए हैं और उनमें मरीजों की सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं रखा जाता.साफ है कि इस फटकार का कोई असर नहीं हुआ.जब भी कहीं अस्पताल में आग लगने की कोई बड़ी घटना सामने आती है तो सरकारी और निजी अस्पतालों के प्रमुख यह प्रतीति करते हैं कि वे ऐसे उपाय कर रहे हैं, जिससे उनके यहां ऐसी कोई घटना न घटने पाए, लेकिन झांसी मेडिकल कालेज की घटना यही बता रही है कि नतीजा ढाक के तीन पात वाला है.यह इसीलिए है, क्योंकि अस्पतालों में सुरक्षा उपायों की अनदेखी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती.इसी कारण उन कारणों का निवारण नहीं किया जाता, जिनसे किसी अस्पताल में आग ही न लगने पाए. जब अस्पतालों में आग से बचने के मामले में सुरक्षा उपायों की घोर अनदेखी की जा रही हो, तब फिर कोई भी यह समझ सकता है कि अन्य स्थलों पर आग से बचाव के उपायों पर कितना ध्यान दिया जाता होगा? इस पर हैरानी नहीं कि अपने देश में अस्पतालों के साथ-साथ होटलों, कारखानों, स्कूलों आदि में आग लगने से लोगों की जान जाने के समाचार रह-रहकर आते ही रहते हैं. ये समाचार शासन-प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना रवैये की गवाही ही नहीं देते, देश की बदनामी भी कराते हैं. कुल मिलाकर झांसी की घटना की गंभीरता से जांच तो होनी ही चाहिए साथ ही आपराधिक लापरवाही के दोषी सभी जिम्मेदारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. इस घटनाक्रम से मध्य प्रदेश सरकार को भी सचेत हो जाना चाहिए. हमारे यहां के अस्पतालों की दुर्दशा भी किसी से छिपी नहीं है. मध्य प्रदेश सरकार ने भी सभी सरकारी अस्पतालों का सेफ्टी ऑडिट करवाना चाहिए. इसके लिए सभी जिला कलेक्टरों को निर्देशित किया जा सकता है.