न झंडे न बैनर, सूना-सूना सा चुनावी माहौल

शहडोल संसदीय क्षेत्र में महज रस्म अदायगी के साथ लड़ा जा रहा चुनाव
फोटो- हिमाद्रि सिंह, फुंदेलाल सिंह

अविनाश दीक्षित
शहडोल:लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी अर्थात पार्षद- सरपंच के चुनाव में भी झंडे -बैनर, पोस्टर जगह-जगह दिखाई जरूर देते हैं, लेकिन शहडोल संसदीय क्षेत्र के लिए हो रहे लोकसभा चुनाव में सियासी नजारा दूसरी अन्य सीटों से बिल्कुल जुदा है। यहां न झंडे – बैनर दिख रहे हैं और न ही दीवारों पर चिपके पोस्टर। सियासी गलियारों में कुछ हलचल जरूर दिखाई देती है, लेकिन आमजनों के बीच वह उत्साह नदारत है जो किसी जनप्रतिनिधि को चुनते वक्त मतदाताओं को संतोष का अनुभव कराता है।
चर्चा के दौरान क्षेत्रीय सियासत से ताल्लुक रखने वाले लोग बताते हैं कि भाजपाई खेमें को मोदी मैजिक के सहारे जीत का आत्मविश्वास है। वहीँ कांग्रेस प्रत्याशी सक्रिय बनाम निष्क्रिय के नारे के साथ चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश कर रहे हैं।

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट से भाजपा ने हिमाद्री सिंह को प्रत्याशी बनाया है। हिमाद्री सिंह शहडोल से 3 बार सांसद और कांग्रेस सरकार में दो बार मंत्री रहे स्व. दलबीर सिंह की बेटी हैं। हिमाद्री सिंह बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो गईं थीं। उन्होंने मोदी लहर में अच्छे अंतर से चुनाव भी जीता, लेकिन अपने क्षेत्र के लिए कोई खास उपलब्धियां हासिल नहीं कर सकीं। विरोधियों के अलावा उनके खेमे के लोग भी अप्रत्यक्ष रूप से उन पर निष्क्रियता के आरोप लगाते हैं। दरअसल हिमाद्री सिंह के कामकाज की तुलना उनके पिता स्व. दलबीर सिंह द्वारा अर्जित उपलब्धियों से की जाती रही है।

दलबीर सिंह की विकासवादी सोच के तहत शहडोल में आकाशवाणी केन्द्र, दूरदर्शन केन्द्र, पॉलिटेक्निक कॉलेज, सेंट्रल बैंक, स्टेट बैंक का संभागीय कार्यालय, भारतीय जीवन बीमा निगम का मंडल का कार्यालय, अमरकंटक में ट्राइबल यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव, कलेक्ट्रैट का संयुक्त कार्यालय तथा जिले का पहला नया कलेक्ट्रेट भवन बना, जिसकी तर्ज पर दूसरे जिलों में भी भवन में भी भवन निर्मित कराये गये। सिंचाई सुविधा बढ़ाने के उद्देश्य से कई बांधों को स्वीकृत कराने में वह सफल रहे। कट्टर कांग्रेसी रहे स्व. दलबीर सिंह तीन बार सांसद चुने गये और दो बार मंत्री भी रहे । अपने समय में शहडोल सहित अन्य समीपी जिलों में स्व. दलबीर को न केवल सम्मान से देखा जाता रहा, बल्कि उनके ना रहने पर भी संभाग के लोग उनके परिवार को पसंद करते रहें, जिसका लाभ हिमाद्री सिंह को मिलता आ रहा है।

हिमाद्री की उपलब्धियां
लोगों की मानें तो हिमाद्री सिंह के खाते में 5 साल में शहडोल से नागपुर ट्रेन तथा पासपोर्ट कार्यालय खोले जाने के अलावा अन्य कोई ऐसा काम शहडोल में नहीं हुआ है, जिसे हिमाद्री सिंह की बड़ी उपलब्धियों में गिना जा सके। मतदाताओं के बीच हिमाद्री सिंह को लेकर क्या धारणा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को शहडोल में कहना पड़ा कि 5 साल में शहडोल का समुचित विकास किया जाएगा। स्मरण रहे कि शहडोल संभागीय क्षेत्र में भाजपा की रीति-नीति को पंसद करने वालों का एक बड़ा वर्ग है, जिसके चलते भाजपा लगातार मजबूत होती जा रही है, जिसका उदाहरण विधानसभा चुनाव के दौरान देखने मिला था, जब संभाग की 8 में से 7 विधान सीट जीतने में भाजपा सफल रही। इस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा मजबूत स्थिति में नजर आती है।

फुंदेलाल दे रहे चुनौती
मोदी मैजिक और मजबूत जनाधार के बावजूद भाजपा प्रत्याशी हिमाद्री सिंह की यह आसान नहीं है। हिमाद्री सिंह के पिता स्व. दलबीर सिंह के करीबी माने जाने वाले और 3 बार के विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को को कांग्रेस ने लोकसभा प्रत्याशी बनाकर चुनावी मुकाबला रोचक, बना दिया है। कुछ समय पूर्व तक चल रहीं चर्चाओं के मुताबिक फुंदेलाल सिंह लोकसभा चुनाव लडऩे के मूड में नहीं थे, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के कहने तथा लोकसभा प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद वह पूरी शिद्दत से सक्रिय हैं। आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पैठ और मजबूत करने के इरादे से मैदान में डटे हैं। वह सक्रिय बनाम निष्क्रिय के नारे के साथ जनसम्पर्क में लगे हुए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि शहडोल का चुनाव परिणाम आत्मविश्वास से लबरेज पार्टी भाजपा के पक्ष में रहता है, अथवा बिखरे संगठन तथा बिना शोरगुल किये चुनाव में जुटे कांग्रेस के फुंदेलाल के पक्ष में जाता है।

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