मैंने किसानों का हाथ और साथ दोनों कभी नहीं छोड़ा : कमलनाथ

उमरेठ के पटपड़ा आयाजित की गई जनसभा में बोले पूर्व मुख्यमंत्री

छिन्दवाड़ा. मैंने किसानों का हाथ और साथ दोनों कभी छोड़ा. प्रत्येक वर्ग की खुशहाली के लिये दिन-रात काम किया ताकि मेरे जिले का भविष्य सुरक्षित रहे. किसानों को सम्पन्न बनाने की दिशा में मेरा पहला कदम सोयाबीन की क्रांति लाना था तब लोग मुझे कहते थे इससे क्या होगा, लेकिन बाद में यह पीला सोना कहलाया. अच्छे उत्पादन से अन्नदाता आर्थिक रूप से सक्षम हुए. मक्का और सोयाबीन के उत्पादन में हमारा जिला अव्वल रहा है. इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों को भी मैंने कभी पिछडऩे नहीं दिया. उक्त उदगार आज पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उमरेठ के पटपड़ा व मोहखेड़ के बीसापुर में आयोजित जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा. कार्यक्रम से पूर्व कमलनाथ ने जनसभा के मंच से अपने जिले के परिवारजनों को चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें दी. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने उदबोधन में आगे कहा कि मैंने सरकार बनते ही किसान कर्जमाफी, रोजगार के इंतजाम, वृद्धा पेंशन में वृद्धि, सौ रुपये में सौ यूनिट बिजली और भी कई योजनायें प्रारम्भ कराई जिसके लाभांवित तो आप भी है. छिन्दवाड़ा में कभी खाद की किल्लत नहीं हुई प्रदेश के अन्य जिलों में खाद के लिये कतारें लग जाती है. मैंने किसानों के साथ-साथ हर वर्ग के साथ न्याय किया है. भाजपा ने 450 रुपये में रसोई गैस सिलेण्डर देने का वादा किया था आज भी पूरा नहीं हो पाया, किसानों की आय दोगुनी करने की बात से लेकर अनेकों घोषणायें उनके द्वारा की गई किन्तु एक भी पूरी नहीं हुई और यह बात भी आप सभी अच्छी तरह जानते हैं. ये लोग पुन:आप के बीच आयेंगे और गुमराह करने का प्रयास करेंगे किन्तु मुझे भरोसा है कि आप सच्चाई का साथ देंगे. सच्चाई तो आपके सामने हैं. महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ता अपराध और अत्याचार से नागरिक जूझ रहा है फिर ये किस अच्छे दिन की बात करते हैं. प्रदेश को भ्रष्टाचार और अपराध का गढ़ बना दिया है. छिन्दवाड़ा में जो हुआ वह आपके बल और शक्ति से हुआ है. आप सभी ने मुझ पर विश्वास जताया तभी तो हम विकास की इतनी सीढिय़ां चढ़ पाये हैं. युवा पीढ़ी ने वो छिन्दवाड़ा नहीं देखा जब सड़कें नहीं थी. बड़े-बड़े गड्डे हुआ करते थे, मैं दौरा करने निकलता था तो लगता था कब जीप पलट जाये कोई भरोसा नहीं पैदल चलना पड़ता था. बिजली नहीं थी और जिस पातालाकोट के अंतिम छोर तक आज पक्की सड़क हैं वहां पहुंचने में ढ़ाई से तीन घण्टे लगते थे। वहां के निवासी आम की गुठलियों को पीसकर आटा बना लेते थे, क्योंकि उनका बाहरी दुनिया से कोई सम्पर्क नहीं था, इसका भी कारण था, क्योंकि सड़कें नहीं थी. आज पातालकोट हमारे जिले की पहचान बन चुका है समय के साथ वहां का नागरिक भी सम्पन्न हो रहा, यह सबकुछ देखकर मुझे खुशी मिलती है. अंत में मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि जो प्यार और विश्वास आप सभी ने मुझे दिया है वही प्यार और विश्वास नकुलनाथ को भी मिलें.

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