नलखेड़ा: उज्जैन से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी मंदिर स्थित है। यह मंदिर लखुन्दर नदी के तट पर स्थित है। मंदिर धार्मिक एवं तांत्रिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मंदिर में स्थित मां बगलामुखी की मुर्ति पाण्डव कालीन है। इसका प्रमाण कालिका पुराण में बताया गया है। मंदिर में स्थित मुर्तियों में बीच में मां बगलामुखी , दाए महालक्ष्मी व बाऐं मां सरस्वती पीण्डी के रूप में विराजित है।
द्वापर युग में अज्ञातवास के समय पाण्डवों को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था की तुम मां बगलामुखी की साधना करो । दस महाविद्याओं में मां बगलामुखी अष्टम महाविद्या है। मां बगलामुखी की साधना अचुक होती है। यह मंदिर 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। त्रिशक्ति मां का मंदिर भारत वर्ष में प्रधान सिद्ध पीठ नलखेड़ा में स्थित है। बेल पत्र, चंपा, सफेद आंकड़े, आंवले तथा निम्न एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित है ।
मंदिर के पीछे लखुन्दर नदी (पुरातत्व नाम लक्ष्मणा) का पानी वर्ष भर रहता है जो प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है। नदी के किनारे कई संतो की समाधियां स्थित है। पुर्व में बड़ी संख्या में संतो के रहने का प्रमाण मिलता है। मंदिर के चारों दिशाओं में पुर्व से श्मशान (मुक्तिधाम) है जो साधना एंव तन्त्र स्थल होने का प्रमाण है।
मंदिर परिसर में 16 खम्बों वाला सभा मण्डप है जो 276 ई.सा. वर्ष पूर्व संवत 1815 में पंडत ईबूजी दक्षिणी कारिगर श्री तुलाराम ने बनवाया था । इसी सभा मण्डप में मां की ओर मुख करता एक कछुआ है जो यह सिद्ध करता है कि पुराने समय में मां को बली चढ़ाई जाती थी। मंदिर के ठीक सम्मुख 32 फीट उंची दीपमाला स्थित है । कहा जाता है कि उसका निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था ।