नवभारत न्यूज
खंडवा। निमाड़ संभाग की अटकलें फिर कुलाचें मार रही हैं। इसका मुख्यालय खंडवा में खुलना चाहिए। भौगोलिक दृष्टिकोण भी यही कहता है। आवागमन के संसाधन यहाँ ही अनुकूल हैं। फिर क्यों खरगोन में मुख्यालय की वकालत हो रही है?
प्रदेश के मुखिया का झुकाव भी उसी तरफ दिखता है। यूनिवर्सिटी के बाद विकास प्राधिकरण और कमिश्नरी भी बड़े जनप्रतिनिधियों की कमजोरी के कारण खरगोन की झोली में पके आम की तरह जाने को बेताब हैं। खंडवा की जनता के साथ सौतेलापन होने के बावजूद भाजपा की तरफ झुकाव समझ से परे है।
आयातित नेताओं
से जवाव मांगो!
क्या यहाँ के बड़े नेता आयातित हैं,इसलिए? ऐसा है तो इन्हें खदेड़ा जाना चाहिए। डीआईजी मुख्यालय,बीना रिफायनरी, सिंचाई की नहरें खंडवा में आते-आते कहीं और चली गईं। ऐसा खंडवा कमिश्नरी के मुख्यालय में भी होने जा रहा है। खंडवा जिले के लोग नींद में ही रहे, तो यहाँ का विकास भी पागल होने के कगार पर आ टिका है। कांग्रेसी भी रेडीमेड विरोध करते नजर आते हैं। जनता और मीडिया को भटकाने के लिए निगम समेत कई बड़े आंदोलन होते हैं। पीछे से बड़े मुद्दे बिना हल्ले के पास हो जाते हैं। जनता के कान पर जूं तक नहीं रेंगतीं। इसी का फायदा उठाया जा रहा है।
घुंघरू की तरह बजते ही रहोगे
निमाड़ कमिश्नरी की कवायदें फाइलों में काफी दूर पहुंच चुकी हैं। इसके मुख्यालय को खरगोन बनाया जा सकता है। यदि ऐसा रहा तो खंडवा के लोग घुंघरू की तरह बजते ही रह जाएंगे। ठीक तवायफ के पाँवों की तरह। कभी इस पांव में,तो कभी उस पांव में। मसला गंभीर है। खंडवा में कमिश्नर का मुख्यालय हो। इसलिए अभी से प्रयास जरूरी हो गए हैं।
दिमाग से सोचो तो जरा
सवाल कई तरह के उठते हैं। इंदौर कमिश्नरी में 8 जिले हैं। काफी बड़ा एरिया हो जाता है। इसलिए निमाड़ कमिश्नरी की जरूरत है। रजामंदी के लिए कानूनी अड़चनों पर मशक्कत जारी है। इसके लिए सबसे ठोस आधार भौगोलिक परिस्थिति है। इसमें खंडवा के अंक सबसे ज्यादा होतेहैं। निमाड़ में चार जिले आते हैं। खंडवा,खरगोन,बड़वानी और बुरहानपुर। इन सबके बीच में खंडवा ही आता है। यहाँ से खरगोन व बुरहानपुर ज्यादा दूर नहीं हैं। बड़वानी भी उतना दूर नहीं पड़ेगा।
खंडवा जैसा वहाँ कुछ नहीं?
यदि खरगोन को कमिश्नरी मुख्यालय बनाया जाता है तो बुरहानपुर के लोग फजीहतें झेलेंगे। आवागमन के साधनों की बात करें तो खंडवा में सडक़,रेल और हवाई यहाँ तक कि जलमार्ग भी जल्द खुल जाएगा। ऐसे में खंडवा को ही कमिश्नरी का हक सबसे पहले मिलने का हक बनता है। खरगोन में रेल मार्ग व हवाई अड्डा (पट्टी) नहीं है। वहाँ डीआईजी कार्यालय पहले से ही खंडवा से भी छोटा होने के बावजूद खुल चुका है। अब विकास यदि खंडवा का नहीं किया गया तो मसला खतरनाक हो सकता है। रेल सेवा में मुंबई व भोपाल से जुड़ा हुआ है। इंदौर से रेल सेवा जुडऩे वाली है। यहाँ का काम काफी फास्ट हो जाएगा।
लोग,नेता चुनते क्यों हैं?
सबसे माइनस पाइंट राजनीतिज्ञों का आता है। खंडवा से डीआईजी मुख्यालय और इंदिरा सागर व ओंकारेश्वर की नहरों का जाल छिनने का कारण ही यही है। बीना में जो बड़ी रिफायनरी है,वह भी यहीं खुलने वाली थी। केंद्र के लिए चुने हुए नेताओं के इटरेस्ट न लेने के कारण बीना पहुंच गई। सवाल यह है कि यहाँ भाषण झाड़ते समय जिन नेताओं के गले नसें फूल जाती हैं। खंडवा-बुरहानपुर के विकास पर संसद में उनकी सांसें क्यों फूल जाती हैं?