सामाजिक सुरक्षा भी जरूरी है वृद्ध जनों को

अभी हमारे देश को युवा कहा जाता है क्योंकि यहां की 65 फीसदी आबादी 18 से 35 वर्ष के युवाओं की है लेकिन यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को अपने संबोधन में इस बात का उल्लेख करते हुए आयुष्मान योजना का विस्तार किया और देश के सभी 70 प्लस के वरिष्ठ जनों को आयुष्मान कार्ड का फायदा दिया गया है. बहरहाल,दुनिया भर में 1 अक्टूबर यानी मंगलवार को वृद्ध जन दिवस मनाया गया. इस बहाने वरिष्ठ जनों की स्थिति पर स्वाभाविक रूप से चर्चा हुई. वरिष्ठ जनों को आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा की भी दरकार होती है. भारत में हमेशा से कुटुंब परंपरा रही है. इस कुटुंब परंपरा में वृद्ध जनों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलती थी. परिवारों के विघटन के साथ ही वरिष्ठ जनों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं.दरअसल,पूरी दुनिया मानवीय मूल्यों की गिरावट और आचरण हीन होती युवा पीढ़ी और परिवार के बुजुर्गों की देखभाल की समस्या से परेशान है. समाज शास्त्र के विशेषज्ञ मानते हैं कि परिवार परंपरा का विघटन ही बुजुर्ग पीढ़ी के तिरस्कार और असुरक्षा का कारण है. यह विडंबना है कि जिस पीढ़ी ने रात दिन परिश्रम करके अपनी आने वाली संतानों के लिए स्वर्णिम भविष्य की इबारत लिखी थी, वो पीढ़ी अब उपेक्षित और असहाय हो रही है. दरअसल,समय के साथ शरीर थकता है, आय घटती है, बीमारियां बढ़तीं हैं. यानी मनुष्य जीवन का सबसे कठिन समय वृद्धावस्था के रूप में प्रारंभ होता है. 2006 के आकड़ों के अनुसार विश्व में वृद्ध जनों की संख्या 11 फ़ीसदी थी जो 2016 में बढक़र 14 फ़ीसदी हो गई. अनुमान है 2050 तक यह अनुपात 22 प्रतिशत हो जायेगा. यह भी अनुमान है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर वृद्ध व्यक्तियों की संख्या युवाओं से अधिक हो जाएगी, और यह वृद्धि विकासशील देशों में सबसे तेज़ होगी. इस परिदृश्य ने आने वाले समय के लिये अनेक प्रकार की चुनौतियों का संकेत दे दिया है. एक रिपोर्ट के अनुसार वृद्धजनों के सामने मुख्य रूप से छह प्रकार की समस्याएं देखीं गईं हैं.इनमें आयु बढऩे के साथ शारीरिक रूप से दुर्बलता आना.ऊर्जा घटने और शारीरिक रोगों का कारण अतिरिक्त देखभाल की जरूरत का पडऩा.शारीरिक क्षीणता के कारण जब शारीरिक रोग होने पर उचित देखभाल न हो तो मानसिक हीनता उत्पन्न होती है.यह हीनता अनेक मानसिक रोगों को जन्म देती है. तीसरी समस्या अकेलेपन की होती है. चौथी समस्या आर्थिक असुरक्षा की होती है.आय घटती है और बढ़ते रोगों के कारण व्यय बढ़ता है, तो आर्थिक असुरक्षा का भाव उत्पन्न होता है. पांचवी समस्या संयुक्त परिवार के अभाव की होती है.बच्चे अपने केरियर के लिए घर से दूर पढ़ते हैं, जॉब करते हैं तो उन्हे अपने बुजुर्गों से लगाव नहीं रहता.इसलिये वृद्धजनों को जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है तब वे अकेले रह जाते हैं और छठी समस्या सामूहिकता और मनोरंजन की देखी गई है. बुजुर्गों का भी मन होता है हंसने बोलने और घूमने फिरने का.पर समय के साथ वे अकेले हो जाते हैं. बहरहाल,1990 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वृद्ध जनों की समस्याओं को लेकर पूरा एक सत्र रखा था. इसके बाद. इसके बाद 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध जन दिवस मनाने का फैसला किया गया.

पहली बार 1 अक्टूबर 1991 को वृद्धजन दिवस मनाया गया. इस दिवस के माध्यम से बुजुर्गों के प्रति समाज को दायित्वबोध कराने का अभियान आरंभ किया गया है. इसके लिये प्रतिवर्ष एक विशेष थीम होती है. इस वर्ष की थीम है गरिमा के साथ वृद्धावस्था.भारत में यद्यपि वृद्धजनों की स्थिति में उतनी गिरावट नहीं है जितनी विश्व के पश्चिमी देशों में है, फिर भी यहां दोनों प्रकार के आंकड़े बढ़ रहे हैं.वृद्धजनों की संख्या भी और उनके साथ उपेक्षा अपमान के व्यवहार के भी.बहरहाल, वृद्ध जनों की आर्थिक सुरक्षा के मामले में सरकार कुछ कर सकती है. मौजूदा और पूर्व की केंद्र और राज्य सरकारों ने काफी कुछ किया भी है लेकिन जहां तक सामाजिक सुरक्षा का सवाल है तो इस मामले में सामाजिक संगठनों और सगे संबंधियों की जवाबदारी ज्यादा है. कुल मिलाकर यह एक ऐसी समस्या है जिस पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए.

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