कोलंबो, 29 सितंबर (वार्ता) श्रीलंका की पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा (सीबीके) नवंबर 2024 में होने वाले आम चुनाव को लेकर सक्रिय हो गयी हैं और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का विरोध करने के लिए एक व्यापक गठबंधन बनाने के लिए प्रभावशाली राजनेताओं के साथ गुप्त बैठकें कर रही हैं।
एलईएन की रिपोर्ट के अनुसार सुश्री कुमारतुंगा पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, सामगी जन बलवेगया (एसजेबी) के विपक्षी नेता साजिद प्रेमदासा, तमिल और मुस्लिम राजनीतिक नेता और दक्षिणी क्षेत्रों के कई छोटे, निष्क्रिय राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ कथित तौर पर बैठकें कर रही हैं। वह जिन लोगों के साथ बैठकें कर रही है, उनके साथ 1994 से 2005 तक राष्ट्रपति के तौर पर काम कर चुकी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन बैठकों का लक्ष्य कथित तौर पर एनपीपी के खिलाफ गठबंधन बनाना है, जो नव निर्वाचित राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके (एकेडी) के नेतृत्व में अधिक से अधिक शक्तिशाली होता जा रहा है।
सुश्री कुमारतुंगा कथित तौर पर हाल के हफ्तों में कोलंबो में एक विशेष उच्चायोग का कई बार दौरा कर चुकी हैं। इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वह इस विदेशी संस्था से राजनीतिक सलाह और समर्थन मांग रही हैं, जिससे यह अटकलें और तेज हो गई हैं कि पड़ोसी देश एनपीपी के खिलाफ गठबंधन बनाने के उनके प्रयासों का समर्थन कर रहा है। इस देश के एक उच्च पदस्थ राजनयिक के साथ सुश्री कुमारतुंगा की बैठकों पर कड़ी नजर रखी गई है, जिससे श्रीलंका की राजनीतिक प्रक्रिया में संभावित विदेशी हस्तक्षेप के बारे में सवाल उठ रहे हैं। इन रिपोर्टों ने विभिन्न संगठनों और पर्यवेक्षकों को चिंतित कर दिया है।
विशेषज्ञों को चिंता है कि सुश्री कुमारतुंगा के कार्यों से चुनावों से पहले देश में अस्थिरता पैदा हो सकती है। वह श्रीलंका के सबसे स्थायी राष्ट्राध्यक्षों में से एक के रूप में प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनका का कार्यकाल विवादों से अछूता नहीं रहा है। आलोचकों ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं, जिसमें पद पर रहते हुए सतत विकास को लागू करने में उनकी अक्षमता और उनके कार्यकाल के दौरान हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन का हवाला दिया गया है। कुछ आलोचकों का तर्क है कि उनकी वर्तमान राजनीतिक गतिविधि सत्ता पर काबिज रहने की इच्छा से उपजी है, खासकर आम लोगों के बीच एनपीपी के बढ़ते समर्थन को देखते हुए।
बढ़ती उम्र और कथित स्मृति हानि के कारण, इस गठबंधन को बनाने के प्रयास में सुश्री कुमारतुंगा की भागीदारी पर भी संदेह जताया गया है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी वापसी एनपीपी की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने का एक प्रयास प्रतीत होता है।