अमेरिका निश्चित रूप से विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति है. इस वजह से जब भी अमेरिका में नया राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो दुनिया भर में यह चर्चा होती है कि क्या अब दुनिया के समीकरण बदलेंगे ? हालांकि यह भी हकीकत है कि अमेरिका में राष्ट्रपति बदलने से वहां की नीतियों को कोई फर्क नहीं पड़ता. इस बार यह चर्चा हो रही है कि डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल पश्चिम और मध्य पूर्व एशिया की दृष्टि से किस तरह का रहेगा. दरअसल,दुनिया की अर्थव्यवस्था की रफ्तार पश्चिम एशिया और मध्यपूर्व एशिया की स्थिति तय करती है. अमेरिका और रूस के अलावा सबसे अधिक तेल के भंडार इसी क्षेत्र में है. जाहिर है तेल की कीमतों का असर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. पिछले दिनों जिस तरह से इजरायल, ईरान और हमास के बीच संघर्ष चला उस वजह से तेल का दाम लगभग 80 बैरल प्रति डॉलर तक पहुंच गया.सितंबर के मुकाबले इनमें 16 प्रतिशत तेजी आई है. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था को तेल के दाम बढऩे से फिलहाल कोई दिक्कत नहीं होगी और वह इससे आसानी से निपट लेगी. मगर कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया तो भारत की चिंता बढ़ सकती है.फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था.जून 2022 में तेल के दाम 120 डॉलर प्रति बैरल के पास पहुंच गए थे मगर जुलाई 2022 के बाद ये 100 डॉलर के नीचे चले गए और ज्यादातर समय 80 डॉलर से नीचे रहे हैं.ऐसा दो वजहों से हुआ.पहले तो उत्तर अटलांटिक संधि संगठन और यूरोपीय संघ ने तय कर दिया कि रूस से 60 डॉलर प्रति बैरल से कम पर तेल नहीं खरीदा जाएगा. साथ ही उन्होंने रूस से तेल आयात पर निर्भरता भी कम कर ली. 60 डॉलर की यह सीमा बहुत कारगर रही. दूसरी वजह नपे-तुले बढ़ावे का सिद्धांत रही. इस सिद्धांत के अनुसार नाटो यूक्रेन को धीरे-धीरे रूस से लडऩे लायक बनाएगा.इजरायल और ‘प्रतिरोध की धुरी’ के बीच टकराव में भी यही सिद्धांत अपनाया गया है.इजरायल पिछले एक वर्ष से लेबनान के साथ लगने वाली अपनी उत्तरी सीमा पर हिजबुल्ला से लड़ रहा है.यह टकराव सीमा के दोनों और छोटी सी पट्टी में हो रहा है और दोनों तरफ जान-माल का अधिक नुकसान नहीं हुआ है.ईरान और इजरायल ने एक दूसरे को जवाब देने के लिए मिसाइल दागी हैं, जिनमें हुए नुकसान से दोनों देशों को दिक्कत नहीं है.टकराव को नपा-तुला बढ़ावा देने में चूक का जोखिम सदैव रहता है.एक पक्ष या दोनों पक्ष किसी न किसी बिंदु पर बरदाश्त की हद पार कर जाते हैं.
पिछले कुछ हफ्तों में हमास के खिलाफ मिली सफलता से उत्साहित प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू मानने लगे हैं कि ‘पश्चिम एशिया को बदलने का’ समय आ गया है. जाहिर है नेतन्याहू के इस रवैए की वजह से इस क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है. बहरहाल,चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को लेकर काफी विवादित बयान दिए थे. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि इजरायल ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमला करे. हालांकि चुनावी भाषणों का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता. सत्ता प्राप्त करने के बाद सोच बदल जाती हैं. जाहिर है अब ट्रंप का खाड़ी के देशों और इजरायल के प्रति रवैया वैसा नहीं रहेगा जैसा चुनाव अभियान के दौरान दिखाई दिया था. चुनाव में ट्रंप ने लगभग सभी देशों से आयात पर 20 प्रतिशत और चीन से आने वाले सामान पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाने का वादा किया है. वो ऊंचे शुल्क को स्थानीय विनिर्माण उद्योग की सुरक्षा का उपाय मानते हैं और कर कटौती से राजस्व को होने वाले नुकसान की भरपाई का स्रोत भी समझते हैं.अर्थशास्त्रियों ने इस पर आपत्ति जताई है मगर अमेरिका में कई दिग्गज कारोबारी मानते हैं कि ट्रंप का सोचना बिल्कुल सही है.बहरहाल, 20 जनवरी को जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की सत्ता को संभालेंगे तो देखना होगा कि उनकी नीतियां पश्चिम और मध्य पूर्व एशिया के संदर्भ में किस तरह की रहती हैं ?