पिता और पुत्र का रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक बच्चे को जन्म भले ही मां देती हों लेकिन दुनिया दिखाने का काम पिता ही करते हैं। बचपन में शिशु पिता के साथ खेलता है, मस्ती करता है लेकिन कई सारे परिवारों में ऐसा होता है कि जैसे-जैसे पुत्र युवावस्था की दहलीज पर कदम रखता है पिता और पुत्र के बीच दूरियां आने लगती है। जबकि यह तो वो समय है जब पिता और पुत्र दोनों के बीच का रिश्ता और प्रगाढ़ होना चाहिए। रिश्ते में एक प्रकार का मैत्री भाव आना चाहिए जो कि कई सारे पिता-पुत्र के बीच होता भी है लेकिन अधिकांश घरों में यह लापता ही होता है जिस वजह से माताएं बेहद परेशान रहती हैं।
जनरेशन गैप
पिता और पुत्र की उम्र में एक पूरी जनरेशन का अंतर होता है। ऐसे में जो दुनिया पिता ने अपनी युवावस्था में देखी होती है, वह दुनिया पुत्र नहीं देख रहा होता है जबकि जो दुनिया पुत्र देख रहा है वो पिता के समय से बहुत भिन्न है तो ऐसे में दोनों के बीच एक दूरी आ जाती है जिसे मिटाने के लिए बहुत जरूरी है कि वह एक दूसरे के समय को जानें और समझने का प्रयास करें नहीं तो उन दोनों के मन में एक ही बात चलती रहेगी कि वे एकदूसरे को नहीं समझते हैं।
रोक-टोक
जिस उम्र से पुत्र गुजर रहा होता है उसी उम्र से पिता भी गुजर चुके हैं तो ऐसे में उन्हें लगता है वे अनुभवी हैं, उम्र के इस पड़ाव पर बेटा किसी गलत दिशा में न चला जाए इसलिए वे उसे हर जगह जाने के लिए या हर काम के लिए हां नहीं कह पाते हैं। इस रोक-टोक में फिक्र छिपी होती है लेकिन पुत्र को लगता है कि पिता अभी भी उसे छोटा बच्चा ही समझते हैं इसलिए इतनी रोक-टोक कर रहे हैं। मन ही मन दूरियां बढ़ जाती है।
स्वभाव
मां और पिता का स्वभाव बहुत अलग होता है। मां जहांं बच्चों को डांटकर पुचकार लेती हैं वहीं पिता का स्वभाव ऐसा नहीं होता है। पिता को नारियल की उपमा दी गई है, बाहर से सख्त और अंदर से कोमल। ऐसे में पिता अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं और पुत्र को लगता है कि पिता को उससे कोई मतलब ही नहीं है, वो अपनी बातों को पिता से साझा करना भी छोड़ देता है क्योंकि वहां उसे कम्फर्ट नहीं मिल पाता है।
वैचारिक मतभेद
पिता और पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद होना बहुत सामान्य बात है। वैचारिक मतभेद वैसे किसी भी रिश्ते में हो सकता है लेकिन पिता और पुत्र के रिश्ते में दोनों ही तरफ पुरुष हैं और पुरुषों में मेल ईगो बहुत जल्दी जाग जाता है। ऐसे में वे किसी बात को एक जगह छोडक़र खत्म नहीं करते हैं बल्कि उसकी गांठ बांध लेते हैं जो कि आगे चलकर दोनों के ही दुख का कारण बनती है।