रीवा-सीधी में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधे लड़ाई, सतना में त्रिकोणीय

विंध्य की डायरी
डा0 रवि तिवारी
विंध्य में तेज तपन के साथ सियासी पारा भी तेजी से बढ़ता जा रहा है. होली के रंगो के बीच राजनीति का भी रंग बदलता दिखाई दे रहा है, विंध्य में सियासी घमासान शुरू हो चुका है. भाजपा में पहुंचने वालो की कतार लगी है. यहां सीधे तौर पर लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है. सियासी लड़ाई की मोर्चा बंदी भी शुरू कर दी गई है और सियासी बैठके भी मैदानी स्तर पर होने लगी है. रीवा और सीधी में सीधे लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच दिखाई दे रही है. सतना में गणेश सिंह को पांचवी बार लोकसभा पहुंचने से रोकने के लिये पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी हाथी पर सवार होकर मैदान में आ गये है. ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है, रीवा में बसपा ने किसी कद्दावर नेता को मैदान में नही उतारा है. संभावना थी कि किसी बड़े चेहरे पर बसपा दांव लगायेगी, शायद कोई बड़ा चेहरा फिट नही बैठा.
भाजपा मोदी लहर के साथ मैदान में डटी है, जबकि कांग्रेस की अपनी रणनीति और एंटी इनकमबेन्सी को चुनावी हथियार बनाकर सियासत का खेल खेल रही है. भाजपासे पूर्व विधायक नीलम अभय मिश्रा के चुनाव मैदान में आ जाने से यहां मुकाबला रोचक हो गया है लड़ाई भी कांटे की होगी. दरअसल विधायक अभय मिश्रा चुनाव लडऩे में माहिर है और हर दांव पेच चुनाव का बखूबी जानते है. तभी तो एक सीट से कांग्रेस अपनी नाक बचा सकी. अब हाट सीट के साथ रीवा प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है. शायद यही कारण है कि नामांकन दाखिल कराने खुद प्रदेश के मुखिया रीवा पहुंच रहे है. चुनाव की तैयारियो के साथ कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलेगे डा0 मोहन, साथ ही कार्यकर्ताओं में उत्साह भी भरेगे. दरअसल पार्टी मुख्यालय को अंदरूनी कलह की जानकारी है और समय रहते इसे दूर कर आपसी तालमेल नही बनाया गया तो भाजपा को चुनाव में आंशिक नुकसान हो सकता है.

आप पार्टी में सन्नाटा

 नगरीय निकाय चुनाव एवं विधानसभा चुनाव में आप पार्टी के नेताओं ने खूब उछल-कूद की और लग रहा था कि प्रदेश में तीसरा विकल्प बनकर आप पार्टी उभरेगी. जिस तरह से आप पार्टी तेजी से उठ रही थी उसी तेजी से नीचे आ रही है. विधानसभा चुनाव में रेत के टीले की तरह सभी उम्मीदवार धराशाई हो गये और अब लोकसभा चुनाव में सन्नाटा पसरा हुआ है. पार्टी का कोई नेता सामने नही आ रहा है, विंध्य में पार्टी के अंदर कलह भी चल रही है. सिंगरौली जिलाध्यक्ष विहीन है जबकि यहां से आप पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष खुद है. लेकिन जिला अध्यक्ष कोई नही है. वर्तमान जिलाध्यक्ष को हटाया गया है लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व ने अभी तक नही हटाया और न ही किसी को जिलाध्यक्ष बनाया. प्रदेश अध्यक्ष और कथित रूप से हटाये गये जिलाध्यक्ष के बीच ठनी हुई है और दोनो में तालमेल नही बन रहा है.

जब पूर्व महापौर को देनी पड़ी सफाई

प्रदेश भर में भाजपा में जाने वालो की होड़ लगी हुई है. हर दिन कोई न कोई कांग्रेस को छोडक़र भाजपा का दामन थाम रहा है और यह सिलसिला अनवरत जारी है. लोकसभा चुनाव की डुग्गी पिट चुकी है और चुनाव के मैदान में प्रत्याशी उतर गये है पर भाजपा में जाने वालो का मोह भंग नही हो रहा है. ऊर्जाधानी से पूर्व महापौर का नाम भाजपा में शामिल होने वालो की सूची में नाम क्या आया मानो भूचाल आ गया. सोशल मीडिया में नाम वायरल हुआ तो पूर्व महापौर को सामने आकर सफाई देनी पड़ी, वह तो कांग्रेस में है और कांग्रेस में ही रहेगे, कही नही जा रहे है. जबकि चर्चा यह है कि भाजपा नेताओं से बात चल रही थी. लेकिन तय मुताबिक शर्त न माने जाने के कारण सहमति नही बन पाई. दरअसल आने वाले चुनाव में सिंगरौली से टिकट की चाहत थी और बात नही बनी तो अपने ही घर में रहना उचित समझा. यह बात और है कि राजनीतिक गलियारे में चर्चा और भी कुछ है

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