राजनीति में यह हिंसक प्रवृत्ति बीते एक दशक के दौरान ज्यादा बढ़ी है.सहिष्णुता और सद्भाव नगण्य-से होते जा रहे हैं.देश के एक वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी ने लिखकर सलाह दी है कि प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर हिंसा सरीखे शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि ये किसी भी नागरिक को उकसा, भडक़ा सकते हैं. कुछ पूर्व सेना अधिकारियों ने भी इस संदर्भ में चिंता जाहिर की है.
यह सिलसिला दरअसल नया नहीं है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ शब्द कहने का सिलसिला 2014 मई से चला हुआ है. तब लोकसभा चुनाव के प्रचार में 10-12 दिन शेष थे.तब न तो जनादेश सार्वजनिक हुआ था और न ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे.अलबत्ता मीडिया से संवाद और साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यह जरूर कहा था कि यदि हमारी सरकार बनी, तो 1993 के मुंबई सांप्रदायिक दंगों के आरोपियों को भारत लाएंगे.भाजपा के तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार मोदी ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का भी जिक्र किया था कि उसे भी भारत लाएंगे और कानूनी कार्रवाई करेंगे.ऐसे बयान सुनकर एक अन्य डॉन ने मीडिया के जरिए मोदी को मारने की धमकी दी थी .
जिन चेहरों के जरिए वह धमकी दी गई थी, उन्होंने भारत सरकार में संबद्ध अधिकारियों को खुलासा कर दिया था.उसके बाद मोदी बीते 10 साल से देश के प्रधानमंत्री हैं और दाऊद को अभी तक भारत नहीं लाया जा सका है.यह विश्लेषण अंडरवर्ल्ड डॉन को लेकर नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा का सरोकार है. प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मुद्दा तो सार्वकालिक है, लेकिन अब यह अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर किए गए हमले के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक है.दरअसल, इन दिनों सहिष्णुता और सद्भाव नगण्य-से होते जा रहे हैं. विपक्ष सरकार की नीतियों का विरोध करने की बजाय प्रधानमंत्री मोदी को निजी तौर पर निशाना बना रहा है.
पंजाब के फिरोजपुर इलाके में प्रधानमंत्री के काफिले को एक हाईवे पर अटक जाना पड़ा, तो उस स्थान पर पाकिस्तान की तरफ से हमला किया जा सकता था ! बड़े पदों पर बैठे व्यक्ति के लिए किसी ने यहां तक बयान दिया कि सिर पर डंडे मारने चाहिए. प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसकी एक लंबी सूची है.राजनीति में आजकल निजी प्रहार खूब किए जा रहे हैं.नरेंद्र मोदी ने भी राजनेता की हैसियत से कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे थे, लेकिन उनके भाव मारने-काटने, हत्या कर देने या बेरोजगार युवा डंडे से पीटेंगे आदि नहीं थे.गौरतलब है कि मोदी देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं. देश पहले भी दो प्रधानमंत्रियों की हत्या देख और झेल चुका है. दरअसल ये शब्द किसी को भी भडक़ा और उत्तेजित कर सकते हैं.उस मनोस्थिति में वह प्रधानमंत्री पर हमला कर सकता है. प्रधानमंत्री की सुरक्षा जन सरोकार है, लेकिन हमारी राजनीति की गरिमा, सभ्यता और शालीन व्यवहार भी दांव पर हैं कि हमारी राजनीति कितना नीचे तक गिर सकती है. इसे रोका जाना चाहिए और राजनीति मुद्दों, तथ्यों के आधार पर की जानी चाहिए. वही लोकतंत्र का सौंदर्य है.प्रधानमंत्री को धमकी भरे बयानों पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि यह देश के एक बड़े पद का मामला है. अगर प्रधानमंत्री ही सुरक्षित नहीं होंगे, तो आम नागरिकों का क्या होगा? कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की सुरक्षा का हर दृष्टि से ध्यान रखा जाना चाहिए.