सिर्फ कश्मीर ही नहीं, मणिपुर और पंजाब भी अशांति की चपेट में है. इसलिए इन तीनों राज्यों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. कश्मीर में हाल ही में जो कुछ हुआ वह निश्चित ही चिंताजनक है, लेकिन मणिपुर और पंजाब में जो कुछ हो रहा है वह भी कम बड़ी समस्या नहीं है. मणिपुर में जातीय संघर्ष का समाधान नहीं हो सका है जबकि लोकसभा चुनाव से जाहिर हुआ कि पंजाब भी धीरे-धीरे उग्रवाद की चपेट में आता जा रहा है. यदि ऐसा नहीं होता तो अमृत पाल सिंह और इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले बेअंत सिंह का बेटा सरबजीत सिंह लोकसभा चुनाव नहीं जीतते. इन दोनों ने निर्दलीय जीत दर्ज की है. ये दोनों ही खलिस्तान के खुले समर्थक माने जाते हैं. दरअसल,आज पंजाब का युवा दोराहे पर खड़ा है. एक रास्ता अलगाववाद की ओर जा रहा है तो दूसरा रास्ता नशे का है. पंजाब नशे में ग्रस्त राज्यों में सबसे ऊपर है. जाहिर है रोजगार नहीं होने के कारण युवाओं में असंतोष है. इसी असंतोष का लाभ ड्रग पेडलर और कट्टरपंथी नेता ले रहे हैं. पंजाब की तरफ इस समय सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. जब तक कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार थी, तब तक उग्रवादी तत्व काबू में थे .जहां तक कश्मीर का सवाल है तो निश्चित रूप से वहां की आतंकी घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं लेकिन वहां अवैध घुसपैठिए और भाड़े के आतंकवादी हमले कर रहे हैं. स्थानीय नागरिकों की उनको मदद नहीं मिल रही है. कश्मीर घाटी की तीन लोकसभा सीटों पर हुआ मतदान इस बात का सबूत है कि कश्मीर के लोग शांति चाहते हैं. मणिपुर में कूकी और मैतई समुदाय के बीच जारी संघर्ष रूकने का नाम नहीं ले रहा है. इस संघर्ष का कारण भी विदेशी घुसपैठिए हैं.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान की चर्चा हो रही थी. अब लगातार हो रहे आतंकी हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा की है . जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा में चार दिनों में चार आतंकी हमले हुए हैं. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल व सुरक्षा एजेंसियों के साथ बैठक की है.इसमें आतंकवाद की नई चुनौती से मुकाबले की रणनीति पर विचार हुआ है. दरअसल, नई सरकार बनने की प्रक्रिया के दौरान हुए इन हमलों में पाक की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.चिंता की बात यह है कि एलओसी से लगते जम्मू के इलाके में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं. मारे गये दो आतंकवादियों के पास से पाकिस्तानी हथियार व सामान की बरामदगी बताती है कि पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठानों की मदद से यह आतंक का खेल फिर शुरू किया जा रहा है. कहीं न कहीं दिल्ली में बनी गठबंधन सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पाक पोषित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में दखल दे सकते हैं. कहा जा सकता है कि राज्य में लोकतंत्र को मजबूत होते देख बौखलाहट में ये आतंकवादी हमले किये जा रहे हैं. दरअसल, केंद्रशासित प्रदेश का शांति-सुकून की तरफ बढऩा आतंकवादियों की हताशा को ही बढ़ाता है. हाल के दिनों में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटकों का घाटी में आना और लोकसभा चुनाव में बंपर मतदान सीमा पार बैठे आतंकियों के आकाओं को रास नहीं आया है. जो भी हो न केवल कश्मीर बल्कि पंजाब और मणिपुर को लेकर भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सचेत होने की जरूरत है. आंतरिक सुरक्षा के मामले में अलग-अलग स्तरों पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. यह संतोष जनक है कि केंद्र सरकार ने आंतरिक सुरक्षा की स्थिति को लेकर सही दिशा में उचित कदम उठाए हैं. दरअसल, जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर वहां विधानसभा चुनाव जल्दी से जल्दी करवाना भी समस्या का एक हल है.