भारत में कार्यस्थलों पर कामगारों की आयु को लेकर समस्या देखने को मिल रही है.भर्ती एजेंसी रैंडस्टैड द्वारा करीब 1,000 प्रतिभागियों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक उनमें से 40 प्रतिशत को कार्यस्थल पर उम्र से संबंधित भेदभाव का सामना करना पड़ा या वे ऐसी घटनाओं के साक्षी बने.55 वर्ष से कम आयु के 42 प्रतिशत प्रतिभागियों ने उम्र संबंधी भेदभाव का सामना किया या उसके गवाह बने.जबकि 55 वर्ष से अधिक आयु के 29 प्रतिशत प्रतिभागियों के साथ ऐसा हुआ.
सर्वेक्षण में शामिल 55 से कम उम्र के आधे से थोड़े अधिक प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें लगता है उनकी कदर की जाती है जबकि 55 से अधिक उम्र के 63 प्रतिशत कर्मचारियों ने ऐसा कहा. 35 वर्ष से कम आयु के 32 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनकी कदर नहीं की जाती है या उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं मिलता.यह पूर्वग्रह रोजगार के विज्ञापनों में भी नजर आता है और यहां 61 प्रतिशत ने नौकरी के लिए आयु या अनुभव वर्षों को मानक बनाया है.इस क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियां अग्रणी हैं. अन्य तरह के पूर्वग्रह भी आयु से संबंधी भेदभाव को बढ़ाते हैं.42 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें ऐसे भेदभाव का अनुभव होता है. जबकि ऐसा महसूस करने वाले पुरुषों की तादाद केवल 37 प्रतिशत थी.एक स्तर पर कार्यस्थल पर रिवर्स एजिस्म (युवाओं के साथ भेदभाव) चकित नहीं भी करता है, क्योंकि भारत की जनांकिकी युवा है और देश की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है. हमारी पारंपरिक सामाजिक भावना भी बुद्धि और काबिलियत को उम्र से जोडक़र देखने की रही है.व्यापक पैमाने पर देखें तो इस सर्वेक्षण में शामिल युवाओं जैसे काबिल युवा जरूरी अनुभव प्राप्त करके रिवर्स एजिस्म की समस्या से निजात पा सकते हैं. वास्तव में चिंता इस बात को लेकर होनी चाहिए कि संस्थानों में आयु संबंधी भेदभाव की प्रवृत्ति घर कर गई है.दो अंत:संबंधित तथ्य अगली पीढ़ी में कार्यस्थल को प्रभावित करेंगे पहला तो यह कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनपीएफ) के अनुसार बुजुर्गों की दशकवार वृद्धि की दर 2011-21 के 35.5 प्रतिशत से बढक़र 2021-31 तक 41 प्रतिशत हो जाएगी और आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी भी दोगुनी होकर 20 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी. यूएनपीएफ के अनुसार 2046 तक बुजुर्गों की आबादी 15 वर्ष और उससे कम उम्र के बच्चों की आबादी को पार कर जाएगी.
अप्रत्याशित और तीव्र गति से उम्रदराज होती आबादी और बढ़ती जीवन प्रत्याशा के साथ अगर इस तथ्य को शामिल कर लिया जाए कि भारत में सेवानिवृत्ति की आयु विश्व स्तर पर प्राय: सबसे कम है तो इससे यही संकेत मिलता है कि जल्दी ही देश की आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसे सेवानिवृत्त लोगों का होगा जो अपनी बचत पर निर्भर होंगे.भारत में कंपनियों और सरकारी उपक्रमों में सेवानिवृत्ति की आयु 58 से 60 वर्ष के बीच है. जबकि पूर्णकालिक निदेशकों के लिए यह अधिकतम 70 वर्ष एवं गैर कार्यकारी निदेशकों के लिए 75 वर्ष तक है. आइसलैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और इटली जैसे विकसित देशों में यह आयु 66-67 वर्ष है.फ्रांस में जहां कामगार 50-60 वर्ष में सेवानिवृत्त होना पसंद करते हैं, वहां पेंशन की आयु को 62 से 64 करने के प्रस्ताव का तीखा विरोध हुआ. सिंगापुर में हाल ही में सेवानिवृत्ति की आयु को 63 से 64 वर्ष कर दिया गया और दोबारा नौकरी की आयु को 68 से 69 वर्ष किया गया.
इनमें से अधिकांश देश तेजी से बूढ़ी होती आबादी के हिसाब से समायोजन कर रहे हैं. दूसरी ओर भारत में युवाओं की बेरोजगारी का स्तर ऊंचा है और कुशल युवाओं की मांग लगातार बढ़ रही है.ऐसे में कार्यस्थलों पर सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने तथा बुजुर्ग कामगारों के अनुभव से अधिकतम लाभ लेने की विरोधाभासी नीति को अपनाना लाभदायक हो सकता है.