देश के तमाम अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री इस विषय पर एकमत है कि भारत के विकास की राह में दो सबसे बड़े रोड़े हैं . पहला अनियंत्रित जनसंख्या और दूसरा बेकाबू भ्रष्टाचार. इस समय भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्वलंत है क्योंकि चारों ओर से भ्रष्टाचार की खबरें आ रही है. हाल ही में इंदौर नगर निगम में फर्जी बिल कांड की अनेक ऐसी परतें खुलती गई कि तमाम नागरिक चिंतित हो गए. इंदौर नगर निगम का यह घोटाला एकमात्र नहीं है ऐसे कई घोटाले हैं इंदौर नगर निगम में हुए हैं. दरअसल, प्रदेश के सभी 16 नगर निगम का ईमानदारी से ऑडिट किया जाए तो इंदौर नगर निगम की तरह सभी में इस तरह के घोटाले और फर्जी बिल कांड सामने आएंगे. फर्जी बिल लगाने का मामला केवल स्थानीय निकाय से जुड़ा नहीं है यदि राज्य और केंद्र शासन के सभी विभागों का सूक्ष्म परीक्षण किया जाए तो सभी जगह इस तरह से फर्जी कांड करते सरकारी अधिकारी और कर्मचारी मिल जाएंगे. सरकारी तंत्र केवल ठेके परमिट में ही भ्रष्टाचार नहीं करता, सरकारी एजेंसियां जांच में भी भ्रष्टाचार करती है. मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेज घोटाले की जांच करते समय जिस तरह सीबीआई के अधिकारियों ने रिश्वत खाई उस सब पता चलता है कि सारे कुएं में ही भ्रष्टाचार की भांग मिली हुई है. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने पिछले दिनों भोपाल में बैठक कर प्रशासनिक अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामले में कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. उम्मीद की जानी चाहिए कि इन निर्देशों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित किया जाएगा.
भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ 2023 (ष्टक्कढ्ढ) में काफी नीचे का स्थान प्राप्त किया. यानी भारत उन देशों में ऊपर के क्रम में है जहां सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है. यह बेहद शर्मनाक है. जिस भी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी यहां छापा पड़ता है, लाखों करोड़ों की संपत्ति बरामद होती है. आय से अधिक संपत्ति के मामले जितने पिछले 10 वर्षों में बढ़े हैं उतने शायद 60 वर्षों में भी सामने नहीं आए होंगे !
एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार एक आदत बन गई है. आमजन मजबूरी में इसे शिष्टाचार भी कहने लगे हैं. कुल मिलाकर स्थिति बहुत ही भयावह है. भ्रष्टाचार का यह सिलसिला कहां जाकर, कब और कैसे थमेगा कहा नहीं जा सकता. दरअसल,सरकारी प्रक्रियाओं, निर्णय लेने और सार्वजनिक प्रशासन में पारदर्शिता की कमी भ्रष्ट आचरण के लिये अधिक अवसर प्रदान करती है. जब कार्यों तथा निर्णयों को सार्वजनिक जांच से बचाया जाता है, तो अधिकारी जोखिम के कम डर के साथ भ्रष्ट गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं. कानूनों और विनियमों को लागू करने के लिए ?िम्मेदार भारत की कई संस्थाएं या तो कमज़ोर हैं या समझौतावादी हैं.इसमें कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ, न्यायपालिका और निरीक्षण निकाय शामिल हैं.कमज़ोर संस्थाएं भ्रष्ट व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराने में विफल हो जाती हैं, इससे भ्रष्टाचारी निर्भय होकर कदाचरण करते हैं. दरअसल, हमारे देश की जांच एजेंसियां और जवाबदेही तय करने वाली संस्थाएं इतनी कमजोर हैं कि भ्रष्टाचारियों को लगता है कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यही मानसिकता किसी व्यक्ति को भ्रष्ट करती है. इसके अलावा भारत का जटिल आर्थिक वातावरण, जिसमें विभिन्न लाइसेंस, परमिट और अनुमोदन शामिल हैं, भ्रष्टाचार के अवसर पैदा कर सकते हैं. भारत में किसी भी उद्योगपति और व्यापारी से चर्चा करें तो पता चलता है कि लालफीताशाही का जाल हमारे तंत्र में फैला है. जब तक लिफाफा नहीं सरकाया जाए फाइल आगे नहीं बढ़ती. देश में ऐसा कोई उद्योगपति या व्यापारी नहीं मिलेगा जिसने रिश्वत दिए बिना अपना व्यापार आगे बढ़ाया हो. भ्रष्टाचार का एक कारण सरकारी तंत्र में बढ़ता राजनीतिक हस्तक्षेप भी है. दरअसल,प्रशासनिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते सरकारी संस्थानों को अपनी स्वायत्तता से समझौता करने को मजबूर होना पड़ सकता है. राजनेता व्यक्तिगत या पार्टी लाभ के लिये अधिकारियों पर भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने का दबाव डाल सकते हैं. कुल मिलाकर भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए बेहद मजबूत इच्छा शक्ति और पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता होती है. जब तक शासन और प्रशासन में पारदर्शिता नहीं आएगी तब तक भ्रष्टाचार की समाप्ति नहीं हो सकती. जाहिर है जब तक भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा तब तक देश का विकास भी अपेक्षित गति नहीं पड़ सकता.