दिवाकर वर्मा
बांदरी:सागर-झांसी नेशनल हाइवे फोरलेन पर बांदरी से दक्षिण में कोई 7 किमी की दूरी पर धसान-कड़ान नदी के पावन तट पर अति प्राचीन मां हिंगलाज देवी का मंदिर है
मेहर के मां हिंगलाजदेवी मंदिर में अज्ञातवास के दौरान पांडव आए थे. इस मंदिर में मां हिंगलाज देवी के अलावा भगवान शिव, बारह काल भैरव, रामदरबार भी है. प्राचीन शिवलिंग भी है. बताते हैं कि इस शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कराई थी. लगभग चार सौ साल पुराने मंदिर प्रांगण में विशाल पीपल, बरगद, बेलपत्र के पेड़ भी लगे हुए हैं जो यहां आध्यात्मिक वातावरण को बढ़ा देते हैं.
मां हिंगलाज देवी मंदिर के पास एक रहस्मयी गुफा है जिसका गुप्त मार्ग गढ़पहरा स्थित अनगढ़ देवी तक जाता है. वैसे तो यहां पूरे साल भक्त आते हैं पर नवरात्र में यहां का महत्व और भी बढ़ जाता है. मंदिर ट्रस्ट द्वारा मंदिर परिसर में बारह ज्योर्तिलिंग की भी स्थापना की गई है. इन शिवलिंगों के दर्शन कर शिव भक्त धन्य हो जाते हैं. बरसात के दिनों में एक सुराग से स्वयं धसान-कड़ान नदी गुप्तेश्वर महादेव का अभिषेक करने आती हैं.
मेहर के प्रतिक्षित समाजसेवी व आस्थावान राम सिंह साहू बताते है कि नवरात्रि आते ही मां हिंगलाज देवी के दरबार में चहल-पहल बढ़ गई है. यहां आने के बाद श्रद्धालुओं को असीम शांति मिलती है और कष्ट सहज ही दूर होते हैं मां के आशीर्वाद का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है. केवल अनुभूति की जा सकती है. बताते है एक समय मंदिर के लोग जाने में डरते थे क्योंकि मंदिर के पास नदी में जंगली जानवर पानी पीते आते थे.
समय के साथ मेहर की आबादी बढ़ने लगी, लोग यहां पर पूजा करने आने लगे, साधू-संतों ने रहना प्रारंभ कर दिया. मंदिर परिसर में कई साधु-संतों की समाधि बनी है.मंदिर के पुजारी रामनारायण दुबे बताते हैं कि नवरात्र में प्रतिदिन मंदिर के पुजारी द्वारा मां हिंगलाज देवी का नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है, जो भक्त मां के श्रृंगार में योगदान देता है उसको असीम सौभाग्य की प्राप्ति होती है, कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले मेहर तथा आसपास के लोग दर्शन करने जरूर आते हैं.
