राजकोट हादसा : भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती निर्दोष जानें

राजकोट अग्निकांड से एक बार फिर जाहिर हुआ कि हमारे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, लालच और लापरवाही की कीमत निर्दोष लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमारी नौकरशाही में संवेदनशीलता का अभाव है. हमारे नौकरशाह शासन करने के अहंकार से ग्रसित हैं.इस कारण से उसमें जनता के प्रति जवाबदेही बिल्कुल भी नहीं है.भ्रष्टाचार के दीमक ने समूचे तंत्र को खोखला बना दिया. यदि राजकोट का प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाता तो क्या इतने मासूम लोगों और बच्चों की जान जा सकती थी ? राजकोट अग्निकांड के जिम्मेदार सभी लोगों और अधिकारियों को कठोर से कठोर दण्ड मिलना चाहिए. इस अग्निकांड की जांच हाई कोर्ट के सेवानिवृत या मौजूदा न्यायाधीश से करानी चाहिए. जांच पूरी तरह से पारदर्शी और समय सीमा में पूर्ण होने वाली हो तथा इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करना भी अनिवार्य होना चाहिए.दरअसल,गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम जोन में भीषण आग लगने से 27 लोगों की जान चली गई.मरने वालों में 9 बच्चे भी शामिल हैं.यह आग कैसे लगी? इतने बड़े हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसे कई सवाल हैं, जो पूछे जा रहे हैं. इन सवालों के बीच हादसे से पूरे गुजरात में शोक की लहर है. वास्तव में टीआरपी गेम जोन अग्निकांड की कहानी दिल दहला देने वाली है.शनिवार रात को जैसे ही टीआरपी गेम जोन में आग की सूचना मिली, दमकल कर्मी मौके पर पहुंचे और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया. बताया जा रहा है कि शनिवार को छुट्टी का दिन होने की वजह से यहां बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे.गेमिंग जोन के मैनेजमेंट ने 99 रुपये एंट्री फीस की स्कीम रखी थी. छुट्टी का दिन होने और सिर्फ 99 रुपये फीस होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचे थे.सवाल यह है कि आखिर गेमिंग जोन में इतनी भीषण आग कैसे लगी? बताया तो ये जा रहा है कि गेमिंग जोन में 1500 से 2000 लीटर डीजल और गो कार रेसिंग के लिए 1000 से 1500 लीटर पेट्रोल रखा गया था.यही वजह है कि आग ने और भीषण रूप ले लिया. शुरूआती जांच में यह बात भी सामने आ रहा है कि गेमिंग जोन को फायर विभाग की ओर से एनओसी नहीं मिली थी. यह भी बताया जा रहा है कि एनओसी के लिए कभी अप्लाई भी नहीं किया गया था.आग लगने के बाद इतने बड़े नुकसान के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि गेम जोन से बाहर निकलने और प्रवेश के लिए 6 से 7 फीट का एक ही रास्ता था.ऐसे में आग लगने के बाद अफरा-तफरी मच गई.लोगों के इस रास्ते से निकले में दिक्कत हुई.जब यह हादसा हुआ तब गेम जोन में खेल रहे बच्चों में से जो बाहर निकल गए उन्होंने बताया कि अचानक वहां के स्टाफ ने हमे आकर कहा कि आग लग गई है, आप बाहर निकले जाएं. इसके बाद वहां से सभी भागने लगे.कुछ लोग ही बाहर नहीं निकल सके, क्योंकि पहली मंजिल से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था.बहरहाल, 24 अक्टूबर 2022 में मोरवी पुल टूटने से 141 लोगों की मौत हो गई थी उस समय भी राज्य की भूपेंद्र भाई पटेल की सरकार ने देश को आश्वस्त किया था कि इस तरह की दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी. अभी तक यह पता नहीं चला कि मोरबी हादसे की जांच का क्या हुआ ? इस हादसे के जिम्मेदार आरोपियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया कितनी आगे बढ़ी ? दरअसल गर्मी के दिनों में आग लगने के हादसे बढ़ जाते हैं.ऐसे में गर्मी प्रारंभ होने के पूर्व ही फायर ऑडिट और सेफ्टी ऑडिट अनिवार्य रूप से होना चाहिए.मेले, उत्सव इत्यादि आयोजन के लिए नियम और कानून भी बने हैं लेकिन अधिकारी भ्रष्टाचार और व्यापारी लालच के कारण इन नियमों का उल्लंघन करते हैं. अधिकांश हाथों के लिए अधिकारियों का भ्रष्टाचार और निजी कंपनियों की लालच जिम्मेदार होती है, लेकिन जिम्मेदार और दोषी लोग आसानी से बच निकलते हैं. मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेज घोटाले से जाहिर हुआ कि जांच में भी भ्रष्टाचार होता है. यानी जांच का भी कोई फायदा नहीं होता. समझ में नहीं आता कि सरकारी भ्रष्टाचार कहां जाकर रुकेगा. राजकोट हादसे के बाद पूरे देश भर में एक बार फिर अलर्ट है लेकिन क्या इस हादसे से सबक लेकर जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे ? ऐसा लगता नहीं कि इस तरह के हादसे दोबारा नहीं होंगे. कुल मिलाकर जब तक सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा तब तक ऐसे हादसे रोके नहीं जा सकते. जाहिर है राजकोट अग्निकांड के जिम्मेदारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

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