विदाई समारोह में शामिल नहीं हुए अधिवक्ता
राज्य अधिवक्ता परिषद ने जारी किया था पत्र
जबलपुर: हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ का विदाई समारोह साउथ ब्लॉक में आयोजित किया गया। इस समारोह में हाईकोर्ट व जिला न्यायालय के न्यायाधीश, महाधिवक्ता तथा शासकीय अधिवक्ता तथा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के अलावा कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता शामिल हुए।सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ ने सहयोग के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि काूनन सर्वोपरि है और आम नागरिक को न्याय देना ही न्यायपालिका का कार्य है। कानून की दृष्टि में सभी लोगों लोग न्याय के अधिकारी हैं। लोगों को सुलभ व त्वरित न्याय मिलना चाहिये। इसमें किसी को बाध्य नहीं बनना चाहिये। न्यायालय की आधारभूत संरचना व सुरक्षा अच्छी होनी चाहिये।
न्यायाधीशों का कार्य सिर्फ फैसला देना नहीं है,उनकी भी समाज के प्रति जिम्मेदारी है। जिसका उन्हें पालन करना चाहिये। इस अवसर पर उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों ने उन्हें विदाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ के विदाई समारोह में अधिवक्ता वर्ग शामिल नहीं हुआ। राज्य अधिवक्ता परिषद ने एक पत्र जारी कर 24 मई को आयोजित होने वाले विदाई समारोह में शामिल नहीं होने का आग्रह अधिवक्ताओं से किया था। जिसके कारण अधिवक्ता विदाई समारोह में शामिल नहीं हुए। राज्य अधिवक्ता परिषद ने प्रदेश के समस्त अधिवक्ता संघ से आग्रह किया है कि 25 मई को स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाया जाये। हाईकोर्ट के इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर है जब चीफ जस्टिस के विदाई समारोह में अधिवक्ता शामिल नहीं हुए।
गौरतलब है कि मध्य हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ ने 14 अक्टूबर 2021 को कार्यभार ग्रहण सम्हाला था। उन्होंने अपने कार्यकाल में न्यायालय सुरक्षा, न्यायालय की आधारभूत संरचना तथा पक्षकारों को त्वरित न्याय दिलाने के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम का शुरुआत की है। उन्होने असक्षम वर्ग के लिए हाईकोर्ट के न्यायाधिषों द्वारा पांच हजार रुपये प्रतिमाह आर्थिक सहयोग के रूप में प्रदान करना। दिवंगत व सेवानिवृत्त न्यायाधीश का सम्मान समारोह का आयोजन करना। इसके अलावा लोअर ज्यूडिशियरी में नियुक्ति होने वाले नवीन न्यायाधीशों का शपथ-ग्रहण समारोह आदि शामिल है।
उन्होने अपने कार्यक्रम में जनहित के कई मुददो को संज्ञान में लेते हुए उनकी सुनवाई जनहित याचिका के रूप में करने के निर्देश भी दिये है। जिसमें खुले बोरवेल में गिरने से बच्चों की मौत,सीवर चौम्बर में जहरीली गैस की चपेट में आने के कारण कर्मचारियों की मौत,सरकार द्वारा घोषण किये जाने के बावजूद भी रेप पीड़ित नाबालिग की स्कूल फीस जमा नहीं करना, दान में जमीन मिलने के बाद सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केन्द्र स्थापित नहीं करना आदि प्रमुख है। उन्होने न्यायालय में लंबित प्रकरण की संख्या कम करने के लिए लोअर ज्यूडिशियरी में प्रत्येक तीन माह में 25 प्रकरण के निराकरण की अनिर्वायता का नियम लागू किया था।